उड़ चलू मै गगन में बन के सवेरा
तेरी यादों का एक नया जहां बनाने...
जहां कोई भी परिंदा ना हो
वहां एक ऐसा आसमां बनाने...
वहां बस हवा हो, आकाश हो, उजाला हो और रात हो...
जहां सपने भी हो जाएं हकीकत
ऐसा एक कारवां बनाने...
बना जाऊंगी पंछी और आकाश में उड़ जाऊंगी...
जहां कोई भी ना हो अपना, मै इतना दूर निकल जाऊंगी...
समंदर की लहरों से खेलूंगी...
बारिश में झुमूंगी...
पत्तों की तकिया बना के,
मै रातों में सो जाउंगी..
बारिश की बूंदों से, खुद को भिगो जाऊंगी...
हवाओं के झोंके से, अपने बालों को सवारूंगी...
बादल की घटाओं से, अपने आंखों में काजल लगाऊंगी...
में तो एक आज़ाद पंछी हूं, आकाश में उड़ जाऊंगी...
आशीष गुप्ता...