क्या कभी तुमने भी मोहब्बत किया है...नहीं ना...मैंने किया है मोहब्बत....वो मोहब्बत जो मेरे रूह में बस गई है... दीमक की तरह जो धीरे- धीरे मेरे जिश्मों को खाए जा रही है...उस पर कोई भी दवा असर नहीं करती...और जो असर करती भी है... वो है मोहब्बत... जो तुमसे किया है... तुम नहीं मिली तो ज़िन्दगी वीरान सी हो गई... बंजर जमीन की तरह... जो आज भी बारिश की एक बूंद के लिए सूरज की रोशनी में ख़ुद को तपा रहा है...जिसमें तुम्हारी मोहब्बत की एक बूंद गिर जाए तो शायद जीने की एक उम्मीद जाग जाए...आज भी मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं...तुम्हारी राह देख रहा हूं... मुझे यकीन है तुम आओगी... लेकिन ये भी अब एक ख़्वाब लगता है...जो हर रात को मेरी नींदों में आ जाता है और फिर सुबह होते ही टूट जाता है... मैं जानता हूं तुम हक़ीक़त नहीं हो... लेकिन बस एक ख्वाहिश है मेरी... मैं तुम्हें जीभर के देखूं...तुझे प्यार करूं... तुझे छू कर महसूस करूं...फिर तुम्हें भी एहसास होगा मेरी मोहब्बत का... जो तुमसे बेइंतहा है... इतना कि... जैसे बिन बादल बरसात अधूरा है वैसे ही तुम बिन मैं भी अधूरा...
मेरी धड़कन आज भी तेरा नाम सुनते ही ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगता है...आज भी मेरी आंखें तुम्हारे दीदार में पलकें बिछाएं कब से तेरी रह तक रही है... मैंने आज उन कमरों को एक कर दिया है...जहां हम दोनों के बीच में एक दीवार हुआ करती थी... पूरे घर को तुम्हारी मोहब्बत की रोशनी से सजा रखा है... घर के चौखट आज भी तुम्हारे क़दमों की आहट सुनने को बेताब है...
आशीष गुप्ता...