तुम्हें देखता हूं तो मेरी आंखें भी झुक जाती है...
क्या ये मोहब्बत नहीं है...
ना देखूं तो मेरा दिल भी तड़प सा जाता है...
क्या ये मोहब्बत नहीं है...
जरूरी है क्या... की हर मोहब्बत का इजहार करूं...
कभी तुम भी मेरी खामोशियों को समझो...
जो खामोश होकर भी बहुत कुछ बयां कर जाती है...
सुना है तुम किताब पढ़ती हो...
कभी मेरा चेहरा भी पढ़कर देखो ना...
आंखों में झांक कर देखो... तो पता चलेगा...
की कितनी मोहब्बत है तुमसे...
तुम्हारे मोहब्बत के दरिया में... इस कदर डूबा हुआ हूं मैं कि...
ना तो इसका कोई किनारा ही मिल रहा है...
और ना ही कोई मंजिल...
हर तरफ़ बस तेरी यादों की तन्हाई है...
और इस तन्हाइयों में...
मुझे तेरा इंतजार...
आशीष गुप्ता...