Tuesday, 22 April 2025

हर ख़्वाब हक़ीक़त हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं...

हर मोहब्बत पूरी हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं...

हम तुम्हें पसंद करतें हैं ...ये और बात है...

तुम हमें पसंद करो ...ये जरूरी तो नहीं...

आशीष....

Tuesday, 15 April 2025

हो भगवान से पूरी .. ऐसा कोई वरदान चाहिए...
मैं जब भी रहूं अकेला...मेरे हाथों में तेरे हाथ चाहिए...
हो जाए हमारी पूरी... कितनी भी ख्वाइशें...
जिंदगी मिले हज़ार मगर हर जन्म में बस साथ तेरा चाहिए....

आशीष के शब्द.....

Friday, 11 April 2025

मेरा लिखने का शौक़ और बढ़ गया...
जब से तुम्हें पढ़ने का शौक़ हो गया...

आशीष...

Saturday, 5 April 2025

फर्स्ट लव लैटर

आज कल ज़माना इतना hi-tech हो गया कि... इंसान घर बैठे-बैठे किसी का भी हाल-चाल यूं हीं पल में जान लेता है...इंटरनेट है, मोबाइल है, लैपटॉप, कंप्यूटर ऐसे बहुत सारे साधन हैं... जिससे हम कहीं भी किसी भी जगह हों.... हम अपने प्यार, अपने जज़्बात, अपने एहसास, मोहब्बत, सबकुछ मिनटों में ही एक दूसरे से कह देते हैं....

किसी से प्यार का इज़हार करना हो मोबाइल उठाया... व्हाट्सअप या फेसबुक या मैसेज कर दिया... हां या ना में जवाब मिल गया बस हो गया...ये सब साधारण सा लगता है...
लेकिन अपने प्यार अपने मोहब्बत का इज़हार करने में जो एक डर होता है...जो एक झिझकपन होता है...धड़कनों का धड़कना... ठंड के मौसम में भी पसीने आ जाना... दिन भर या कुछ दिन या महीनों में, उसके जवाब के इतंजार में जो कुछ दिन बीतता है... उसमें जो एक कश्मकश होती है.... उसका एक अलग ही मज़ा होता है...
जो आज कल हमें व्हाट्सअप, फेसबुक, मैसेज, मोबाइल, विडियोकॉलिंग... इन सब में नहीं मिल पाता है...
प्यार के इस खेल में असली मज़ा तो तब आता है...जब हम एक लंबा चौड़ा लव लैटर लिख कर अपने प्यार का इज़हार करतें हैं...कहीं छिपकर तो कहीं किसी के हाथों भेजवाकर...अपने एहसास के कलम से दिल के जज़्बात को शब्दों में पिरो कर एक पैगाम देते है...

वो कहते हैं ना....
दिल की बात जुबां पे लाए तो लाए कैसे...
दिल तुझसे भी मोहब्बत करना चाहे लेकिन जताएं तो जताएं कैसे...

ऐसे ही कुछ कहानी मेरी भी है... टूटी फूटी सी लव स्टोरी...

प्यार की कोई उम्र नहीं होती...और न ही कोई सीमा... प्यार कभी भी हो जाता है...जैसे एक नज़र में ही...कभी उसकी आवाज़ इतनी प्यारी लगती है कि मोहब्बत हों जाती है...तो कभी उसकी आंखें...तो कभी उसके होंठ...

छोटे से थे हम... तब से साथ में थे... मेरे घर के पीछे ही उसका घर था... साथ में खेलना... साथ में पढ़ना... साथ में लड़ाई भी करना... रूठना फिर मनाना... 
ये बचपन वाला प्यार था... मासूम सा प्यार...
कभी छत से मैं उसे देखता... तो कभी छत से वो मुझे देखती...उस समय उसके चेहरे की मासूमियत को बयां करना बहुत ही मुश्किल था...

वो अपने छत से पतंग उड़ाती... मैं अपने छत से पतंग उड़ाता... हम दोनों में शर्त लग गई की कौन किसकी पतंग काट ता है...

लो फिर क्या बात मैंने भी पूरी कोशिश कर ली उसकी पतंग काटने में और पतंग काट दिया...और खूब जोर से हंसने लगा...
ये क्या वो गुस्से के मारे रोने लगी और मुंह फूला कर बैठ गई...
कहने लगी...मुझे नहीं खेलना तेरे साथ cheating करता है...
मैंने बोला... कब cheating किया बताओ...

मैने किश्मी बार टॉफी लिया तब 1 रूप में चार मिलते थे... और जाकर उसे दिया...
काफी टाइम लग गया मुझे तो मनाने में ही...तब हमारी उम्र होगी 8-9 साल...

देखते देखते कब हम बड़े हो गए हमें कुछ मालूम ही ना पड़ा...
हमारा स्कूल भी अब अलग हो गया था...वो लड़कियों के कॉलेज में पढ़ती और हम लड़को के कॉलेज में पढ़ते...
अरे मैंने तो नाम उसका अभी तक बताया ही नहीं...
नंदनी उसका नाम था...घरवाले प्यार से उसे नंदू बुलाते थे और मैं भी...

हम दोनों हाईस्कूल में थे...उसने इंग्लिश की कोचिंग लगा रखी थी...फिर क्या मैंने भी कोचिंग लगा ली इंग्लिश की जहां उसने लगा रखी था...

दोनों साथ में जाते और साथ में आते...

ये दोस्ती वाला प्यार था...
कुछ लोगों को हमदोनों का साथ रहना बिल्कुल भी पसंद नहीं था...हमेशा कुछ ना कुछ कॉमेंट मारते...लेकिन मैं उन्हें चुप भी करा देता...

एक दिन मैं कोचिंग नहीं जा पाया था...क्लास खत्म होने के बाद कुछ लड़को ने नंदनी के साथ बदतमीजी की और कुछ बहस भी हो गई थी...
लेकिन उसने मुझे बताया ही नहीं...

दूसरे दिन....मैं उससे कोचिंग जाने के लिए बोलूं तो वो मना कर दे...बोलती है तबीयत ठीक नहीं है...
एक दो दिन बाद मेरे दोस्त ने मुझे बताया कि कुछ दिन पहले कोचिंग के ही कुछ लड़को से नंदनी की लड़ाई हो गई थी...लड़कों ने कुछ बोल दिया था...इसी कारण वो कोचिंग नहीं आ रही है शायद....

फिर क्या मैं उसके पास गया पूछा...
नंदनी क्या हुआ, तुम कोचिंग क्यों नहीं जा रही हो...
नंदनी...मेरा मन नहीं है...
मैंने पूछा...लेकिन कारण क्या है...
नंदनी...मुझे नहीं पढ़ना वहां अब... सब गंदे लड़के ही हैं... रोज़ उल्टा सीधा बोलते हैं... मुझे चिढ़ाते हैं... मुझे बुरा लगता है इसलिए मैं नहीं जाऊंगी बस...
मैंने पूछा किसने क्या बोला नाम तो बताओ...
उसने नाम बता दिया...

मैं दूसरे दिन कोचिंग गया...पढ़ाई खत्म होने के बाद और सर के जाने के बाद...मैंने उन लड़कों को रोका फिर उनसे पूछा तूने क्या बोला नंदनी से उससे sorry बोल...लड़कों ने sorry बोलने से मना कर दिया...
मैंने तुरंत ही अपनी बेल्ट निकली और सबको पीटना चालू हो गया... वो 3 लोग ही थे...
मैंने दोस्तों से भी बोल रखा था कि अगर मैं पिटने लगूं तो आ जाना बीच में...
मैंने बहुत मारा उनलोगों को...मुझे भी दो चार पड़ गई थी...लेकिन उनकी ज्यादा पिटाई कर दी...
वो लोग बोलें तुझे बाद में देखता हूं...
मैंने कहा ठीक है... ठीक है...लेकिन दोबारा मत छेड़ना नहीं तो कोचिंग ही भूल जाओगे आना...

अब ये बात नंदनी की दोस्त ने जाकर नंदनी को बता दी की आज आशीष ने उन लड़कों को खूब पीटा है तेरे चक्कर में...वो शाम को घर आती है और मुझे बुलाती है...
तुमने क्यों लड़ाई की उन लोगों से...

मैंने कहा- बदतमीजी किया तुम्हारे साथ ऐसे कैसे छोड़ देता...
नंदनी- तू पागल है...

हां हूं पागल...और गुस्से में मैं चला गया...वहां से

मैने कुछ दिन बात ही नहीं किया उससे...गुस्सा जो हो गया था...एक तो लड़ाई करो इनके चक्कर में ऊपर से कोई appreciate नहीं... तो गुस्सा आएगा ही ना...

कुछ दिन बाद वो खुद बोलती है मुझसे...और मनाती भी है... मैं भी मानने वालों में से कहां...

नंदनी शायराना अंदाज में बोलती हैं....

दोस्तों की मेहफिल थी 
शाम भी रंगीन था...
वो पल भी क्या पल था
जब सामने तू था...
आंखों में नशा था 
बातों में प्यार...
अब नाराजगी किस बात की
आ गले लग जा मेरे यार...

गले लगा कर कहती है...अब तो मान जा लड़के...
नंदनी को भी अच्छा लगा कि कोई दोस्त है जो उसके लिए लड़ाई भी कर सकता है...

ऐसे ही दिन बीतता गया... हम हाईस्कूल पास करने के बाद इंटर में आ गए थे...अब थोड़ा समझदार हो गए थे...
लेकिन कोचिंग का सिलसिला वहीं चलता रहा...
एक दिन कोचिंग में वो मेरे सामने ही बैठे थी...आंखों में काजल होंठों पे हल्की सी लाली... नाक में नथनी...बहुत सुंदर दिख रही थी...बहुत ही ख़ूबसूरत...
वो कहते हैं ना...

वो चेहरा
जिसे देखता हूं...
छुप छुप कर देखता हूं...
खोजता हुँ...
हर पल ही खोजता हूं...
वो आज दिखी
कहीं दूर से दिखी...
थोड़ी पास आ गयी
बहुत ही पास आ गयी...
उसने भी देखा कुछ युँ हीं.
मैंने भी देखा कुछ युं हीं...
थोड़ी सी मुस्कुरायी
मुझे देखकर मुस्कुरायी...
आज कुछ अलग सा था
चेहरे पे उसके चमक सा था...
ख़ूबसूरत थी 
बहुत ही ख़ूबसूरत थी...
मासूमियत भी थी
बहुत ही मासूमियत थी...
वो सबसे अलग थी
हर चेहरे से अलग थी...
वो जैसे परी सी थी
वो इतनी प्यारी जो थी...


मैंने पढ़ाई पे ध्यान ना देकर उसकी तस्वीर स्केच करने लगा... सर पढ़ाए जा रहे हैं...हम छिपकर स्केच बनाते जा रहें हैं...थोड़ा ही बाकी था पूरा होने में... सर की नज़र आख़िर पड़ ही जाती है...मेरी स्केच पे...

आशीष तुम क्या कर रहे हो...
मैंने कहा... कुछ नहीं सर लिख रहा था...
सर...अच्छा
और कॉपी ले लिया...
मेरी तो डर के मारे हालत ही ख़राब हो गई...
सर...कुछ नहीं है...कॉपी दे दो...
सर ने आख़िर देख लिया लेकिन कुछ बोला नहीं उस समय...
क्लास खत्म होने के बाद मुझे बुलाते हैं...

ये क्या है...
पढ़ लो थोड़ा... कलाकारी बाद में करना...
वो समझ गए की हम स्केच नंदनी का ही बना रहे थे...
बोले कि आशिकी बाद में कर लेना यहां पढ़ाई पर ही ध्यान दो ठीक है...
मैंने कहा... ठीक है सर...
थोड़ा डांटा भी...
लेकिन सब के सामने कुछ नहीं बोला...नहीं तो बड़ी बेइज्जती हो जाती...

ये कोई प्यार नहीं था... बस दोस्ती वाला प्यार था... बाकी तो प्यार, मोहब्बत, इश्क़, से तो बहुत दूर था... मैं तो इन सब से अनजान था...हम दोनों बस दोस्त थें... और बहुत ही अच्छे दोस्त...
लेकिन कहतें हैं ना मोहब्बत की शुरुआत ही दोस्ती से होती है...

कुछ दिन बीतने के बाद...
मैं अपने दोस्तों के साथ बैठा था...
नंदनी आती है मेरे घर...बोलती है खीर खा लो रख दिया है... और तेरी मम्मी कब से तुझे बुला रही है... सुन नहीं सकता तू... 

मेरे दोस्त मुझसे बोलते हैं...
आशीष नंदनी तुझे पसंद करती है... तभी तेरे साथ घूमती है... बार बार घर आती है...
मैंने कहा पागल हो क्या तुम सब... हम अच्छे दोस्त हैं यार...
इसमें क्या है...
दोस्त बोलते हैं...भाई तुझसे वो प्यार करती हो क्या पता... लेकिन तुमसे वो बोल ना पा रही हो...
मैंने फिर बोला... अरे छोड़ो यार क्या बकवास बाते कर रहे हो...
मुझे पसंद नहीं ये सब फालतू की बातें...
दोस्त... ठीक है कोई बात नहीं...लेकिन कल को अगर कोई और प्रपोज कर दिया तो तू क्या करेगा...
फिर तू दोस्त बन कर ही रहना ठीक है... बाकी मोहब्बत कोई और करेगा...
अभी समय है देख लो... और उसे प्रपोज कर दो बाद में मत कहना कि हम दोस्तों ने कुछ बताया नहीं...
मैंने कहा जाओ यार बाद में मिलते हैं... ऐसा कुछ भी नहीं है... हम दोनों में...

कहते हैं ना दोस्त तो कमीने ही होते हैं...
रात को बैठा था छत पर ही... चांदनी रात... तारों का समंदर था...और ठंडी ठंडी हवाएं चल रही थी...
अचानक से मेरे दिमाग में दोस्तों की बातें गूंजने लगी... कहीं  वो सच तो नहीं बोल रहें...
हवाओं का चलना भी अब कुछ महसूस होने लगा...रात में अकेले बैठ कर चांद की तन्हाई देखकर खुद के तन्हाई का एहसास हो रहा था...दिमाग में दस्तक दे गई थी वो लड़की...और दोस्तों की बातें...

वो कहते हैं  ना...
आज कल मोहब्बत का आलम कुछ ऐसा है...
रात को अकेले बैठ कर आसमां में तारे गिनते हैं...

फिलहाल सो गया... रात कैसे तैसे गुज़र ही गई...

वो घर आती है...मुझसे इंग्लिश की कॉपी लेने के लिए लेकिन इस बार मेरा रिएक्शन दोस्त वाला नहीं था...मुझे दोस्त वाली फीलिंग्स ही नहीं आ रही थी...वो मज़ाक मज़ाक में मेरा हाथ पकड़ ली...मुझे अचानक से कुछ होता है... ऐसा लगा की करेंट सा लगा कुछ...ये क्या हो रहा था मेरे साथ...कहीं मोहब्बत तो नहीं...खुद को समझाता...ऐसा कुछ नहीं...लेकिन फिर उसे देख कर मैं बहक जाता...

मैंने झट से अपना हाथ हटाया और फिर चला गया वहां से....
नंदनी बोली क्या हुआ तुम्हें... इतना उदास क्यों हो... मैं उससे क्या बोलता...

मैंने कहा... कुछ नहीं ऐसे ही मन नहीं लग रहा है...
नंदनी ने बोला... पढ़ाई का प्रेशर कुछ ज्यादा ही ले लिए हो...आराम कर तू...
वो कॉपी ली और चली गई...

फिर हम लोग कोचिंग जाते हैं... साथ वो हमेशा की तरह हसी मज़ाक करते मेरे साथ चलती...लेकिन मुझे पता नहीं क्या गया था...

अब लग रहा था कि वाकई मुझे प्यार हो  गया है... क्यों की जब वो पास रहती तो मेरे दिल की धड़कन तेज हो जाती एक अजीब सी बेचैनी थी....ये दो चार दिन काटना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल हो गया था...रात को नींद ही ना आती और गाने सुनता रहता...आंखे बंद करता तो उसी का चेहरा...छत पर भी उसी का इंतजार करता... सोचता कब आएगी....

वो कहते हैं ना...
तुम्हारी याद में ये दिन कब सुबह से शाम हो गई...
पता ही नहीं चला...कब बादल गरजा और बरसात हो गई...

कुछ दिन बीतने के बाद...
एक दिन अचानक वो अपने कोचिंग के ही लड़के से बात कर रही थी... वो लड़का कुछ नोट्स वगेरह मांग रहा था...दोनों काफ़ी हंस के बात कर रहे थे...
मुझे ये देखकर पता नहीं क्यों जलन सी होने लगी...गुस्सा बहुत आ रहा था...दिमाग में ये चलने लगा कि कहीं ये तो नंदनी के पीछे नहीं पड़ा...

मैंने नंदनी से बोला चलो घर समय हो गया है...
नंदनी बोली रुको चलतें हैं दो मिनट...
मेरा तो मूड ही ऑफ हो गया पहली बार किसी के चक्कर में इंतजार करना पड़ रहा है...
कुछ देर बाद...
नंदनी बोलती है चलो...

जाते हैं घर...लेकिन उदासी का जो आलम था कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था...अब सहन नहीं हो रहा था...दिल किया कि बोल दूं...की नंदनी मुझे तुमसे प्यार हो गया है...लेकिन घंटा ऐसा लगता जान चली जाएगी हिम्मत ही ना जुटा पाता...क्या करता में किससे बोलूं कुछ समझ नहीं आ रहा था...अब तो पढ़ने का मन भी नहीं कर रहा था...

वो कहते हैं ना...
लिखने को तो पूरी किताब ही लिख दूं...
लेकिन क्या करूं...कलम तुम्हारे नाम पे ही रुक जाती है...

नंदनी मुझसे अक्सर बोलती तू बदल सा गया है... पहले जैसा नहीं रहा क्या हुआ तुझे...अब उससे क्या बोलता की मैं तुम्हें पसंद करता हूं...मोहल्ले में मालूम पड़ जाएगा तो बदनामी से जीना हराम हो जाएगा...घर वाले तो पूछो मत क्या बोलेंगे...
एक दिन हम दोनों काफी समय साथ ही थे... मैं उसे देखता ही रहता वो मुझे देखती तो मैं नजरे झुका लेता...
बहुत हिम्मत जुटाया और सोचा अब बोल दूंगा जो होगा देखा जायेगा...

मैंने कहा नंदनी सुनो...
उसने बोला हां बोल क्या हुआ...
मैंने कहा कि अरे कुछ नहीं वो एग्जाम के लिए नोट्स तैयार किया क्या...
मैंने सोचा कि...मेरा तो कुछ नहीं होने वाला...

वो कहते हैं ना कि...
दिल की बात जुबां पे लाए तो लाए कैसे...
दिल तुझसे मोहब्बत करना चाहे...जताएं तो जताएं कैसें...

बड़ी हिम्मत चाहिए यार किसी लड़की से ये बोलना की मैं तुझसे प्यार करता हूं...सारी दादागिरी निकल जाती है...इज़हार करने में ही...

एक दिन फिर वही लड़का आया और उससे नोट्स के बहाने बात करने लगा...मेरी तो हट ही गई... साला ये पक्का इसके चक्कर में है...दिल किया कि आज कूट ही देता हूं...अब तो बर्दास्त से बाहर था...मैंने नंदनी से बोल ही दिया..
तुम क्यों इससे बात करती हो... आज के बाद बात मत करना इससे...अच्छा लड़का नहीं है ये...और मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है...
नंदनी बोली अरे वो नोट्स के लिए आया था...
मैंने कहा कुछ भी हो बात नहीं करनी बस....
फिर मैं चला गया... वो मेरे पास आई और बोली क्या हुआ
मैंने बड़ी हिम्मत जुटा के बोल दिया... मुझे तुमसे कुछ बात करनी है...
नंदनी बोली... हां बोलो क्या बात करनी है...
मैंने बोला...कुछ नहीं बाद में बताता हूं फिर मैं चला गया....

अब फिल्म चालू हो गया... इज़हार का...
वो भी परेशान हो गई की आखिर क्या बात करना चाहता है ये लड़का...
दूसरे दिन मेरे पास आती है बोलती है बोलो क्या कह रहे थे...
मैंने कहा कुछ नहीं यार बाद में बताता हूं...

कुछ दिन तक तो ऐसे ही चलता रहा... मैं क्या बोलूं इसी चक्कर में पूरी रात जागता रहता...अब मिलना भी कम कर दिया था...वो आती तो मैं घर से बाहर चला जाता...आखिर कब तक मैं ऐसा करता... एक ना एक दिन तो बोलना ही था....

मैंने लव लैटर लिखा...
अपने दिल की वो सारी बातें जो मुझसे महसूस होता है...
मैंने लिखा...

आखिर क्यों तुम...
मेरे ख्यालों में आ जाते हो...
मेरी नींदों को चुरा जाती हो...
हर पल हर वक़्त बस... तेरा ही ज़िक्र होता है...
सुबह हो या शाम हो बस... तेरा ही फिक्र होता है...
ऐसा लगता है कि मै ख़ुद को ही भूल गया हूं...
ख़ुद से ही बातें करने लगा हूं....
आईना देखता हूं तो, तुम्हारा ही चेहरा दिखता है...
उस चांद को देखता हूं तो, तुम्हारा ही अक्स दिखता है...
ये कोई पागलपन है...या मेरी मोहब्बत...
रात की तनहाई में जब हवाएं, मेरे बगल से होकर गुजरती है...
ऐसा लगता है तुम मुझे छू रही हो...
मेरे हाथों में तेरा हाथ होता है...
ज़िन्दगी के सफ़र में कुछ पल का साथ होता है...
वो सोकून देता है, तुम्हारे पास होने का...
एक एहसास देता है, तुम्हारे साथ होने का...
कहीं मुझे तुमसे प्यार तो नहीं हो गया...
I love you नंदनी...


लिखा दिया अपने जज़्बात... अपने एहसास और अपनी डायरी में रख दिया...

आज वाकई ज़िन्दगी में पहली बार इतना डर सा गया था... इतना सहम सा गया...किसी से ना डरने वाला लड़का आज डर के मारे कांप रहा था... दिल में धड़कन कि रफ्तार मानो हजारों के स्पीड में चल रही हो...कुछ भी बोलूं आवाज़ लड़खड़ा रहे थे... ये कैसा डर था... ये कैसी उलझनें थी...

सोच लिया था कि इश्क़ का ज़हर है और पीना तो पड़ेगा ही...
वो कहते हैं ना...
ज़हर अगर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है...
इश्क़ अगर सच्चा हो तो इश्क़ करने में मज़ा आता है...


घर में बैठा रहा अपने कमरे में...आखिर नंदनी आ ही गई थी...घर में पूछते पूछते मेरे कमरे में आ गई...
तुम यहां हो मैं तुम्हें कब से ढूंढ रही हूं...
मैंने कहा कुछ नहीं बस कहीं जाने का मन नहीं था...
उसने बोला... परेशान क्यों हैं... चल बता अब...
मैंने बोला... कुछ नहीं यार बस मन नहीं है...

नंदनी बोली... अच्छा तुम क्या बोलने वाले थे... आज बता भी दो तुम्हें मेरी कसम है...और आज नहीं बताया तो समझ लेना आज के बाद बात भी नहीं करूंगी...

मैं क्या बोलता उससे यार... बस उदास मन से एक ख़्वाब की तरह उसे देखता रहा...मैंने कहा वो डायरी है... उसमें कुछ है देख लेना...उसने डायरी लिया और वहीं देखने लगी...

मैंने मना कर दिया plz यार यहां नहीं... घर पर जाओ फिर देखो...और plz अपने तक ही... किसी और से कुछ मत कहना...
वो सोची क्या हुआ...उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था...वो डायरी ली और चली गई घर अपने...

अब इसके बाद मेरे साथ जो हुआ कसम से मैं बयां नहीं कर पा रहा हूं...ऐसा लग रहा था कि आज तो कोई ना कोई तूफ़ान आने वाला है मेरी ज़िन्दगी में...बजरंगबली संभाल लेना...

 वो कहते हैं ना...
आज अचानक से ये हवा कहां से चली...
जिधर भी देखो तेरी यादों का तूफ़ान है...
रोक लो इन्हें कहीं बर्बाद ना कर दे इन बस्तियों को...
यहां तो हर शख्स का बसेरा मोहब्बत के आशियाने में है...

इस पूरे खेल में घरवाले पूरा अनजान थे कि क्या चल रहा है...
काफी देर हो गई थी... वो आई भी नहीं... मैं करूं तो क्या करूं...बाहर जा नहीं सकता... घर में बैठ नहीं सकता...बस सब ऊपर वाले के हाथ में था... मैं छत पर चला गया...शाम हो गई थी...वहीं तारों के बीच...

मैंने छत से देख लिया की वो आ गई है घर में...अब उसका सामना करना मेरे लिए बहुत ही कठिन था...
वो आई और चुपचाप मेरे बगल खड़ी हो गई... थोड़ा उदास सा चेहरा...उसके आंखों में थोड़े आशु...
कुछ देर तो शांत ही थे हम दोनों...फिर मैंने ही पूछा 

क्या हुआ...
वो मुझे देखे जा रही थी... देखे जा रही थी...हाथों में उसके मेरी ही डायरी थी...
समय जैसा रुक सा गया था....

नंदनी ने कहा...
आशीष मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी... हम बहुत अच्छे दोस्त हैं...ये प्यार मोहब्बत मैंने कभी नहीं सोचा और तुमने मेरे थोड़े से हसी मज़ाक को प्यार समझ लिया...
ये ग़लत है यार...
मैं बस चुप था...उसकी बातें सुन रहा था...
अभी तुम इस काबिल नहीं हो की तुम मुझसे प्यार करो... पढ़ाई पर ध्यान दो कुछ बन जाओ...तुम्हारे इस बर्ताव से मैं बहुत दुखी हूं... आशीष...

मैंने कहा हां या ना ये बताओ...
उसने कहां (नहीं) मैं तुमसे प्यार कभी नहीं कर सकती...

मैंने उसके हाथों से वो डायरी ली...और लैटर भी... 
मैंने कहा... ठीक है...आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे... जिस दिन कुछ बन जाऊंगा उस दिन ही बात करूंगा...और हां एक रिक्वेस्ट है...किसी से ये सब कहना मत plz...
मैं रो रहा था ख़ूब... आज लगा की मैं कुछ नहीं हूं...किसी के भी काबिल नहीं...

मैंने बोला...जाओ तुम अब...

वो कुछ देर मुझे देखती रही फिर चली गई...
उसको जाते देख ऐसा लगा ज़िन्दगी ज़िन्दगी से दूर चली  गई...
उस दिन मेरे ज़िन्दगी का सबसे तकलीफ़ भरा दिन था...पूरी रात मैं छत पर ही था... ऐसा लग रहा था कि सबकुछ टूट गया है... अब ज़िन्दगी में कुछ बचा ही नहीं है...

क्या करता... कुछ दिन तो मैं घर से बाहर ही नहीं निकला... किसी से कुछ भी बात चीत नहीं...कोचिंग भी मैंने छोड़ दिया...
कॉलेज जाता फिर आता... ना किसी से बात करता और ना ही किसी से मिलता...काफी दिन ऐसा ही चलता रहा...
बीच बीच में नंदनी मुझसे बात करना चाहा लेकिन मैंने बात ना कि...
अकेले रहने की आदत डाल ली...

प्यार करना उस प्यार का इजहार करना ये कोई ग़लत थोड़ी ना है...मैंने हिम्मत जुटाई और कह दी...बहुत से लोग यही डर के मारे कुछ नहीं कह पाते...और अपने प्यार को सीने में ही दबा के रहा जाते हूं....मोहब्बत करों इजहार से मत डरो...

वो इश्क़ ही क्या जिसमें पागलपन ना हो...
वो मोहब्बत ही क्या जिसमें इजहार ना हो...

फिर मैंने भी अपने प्यार की दास्तां लिख दी...

तुम्हें मालूम है ना, एक बार जब तुम्हारी याद आयी थी...
कागज़ के छोटे से टुकड़े से, मैंने तुम्हारे लिए एक नाँव बनाई थी...
वो नाँव जब पानी से होकर तुम्हारे घर को जाती थी...
तब तुम उस छोटे से कश्ती को देखकर, कितना ख़ुश हो जाती थी...
और ये ख़ुशी देखने के लिए मेरी आँखे भी कितनी तरस जाती थी...
वो बचपन का प्यार था, जो तुमसे हुआ था...
वो मासूम सा प्यार था, जो मुझको हुआ था...
तुम्हें मालूम है ना, जब गली के लड़के तुम्हें परेशान करते थे....
फिर हम दोनों मिलकर, उनकी खूब पिटायी भी करते थे...
तुम्हें मालूम है ना कि, मै तुम्हें मनाउ इसलिए तुम रूठ जाया करती थी...
फिर अगर ना मनाउ तो, आँखो में मोटे-मोटे आँशु भी लाया करती थी...
तुम्हें मालूम है ना कि, मैंने तुम्हारे लिए एक छोटा सा मिट्टी का घर बनाया था...
और उस घर में सपनों का ताज़महल भी बनाया था...
तुम्हारा कमरा अलग था उसमे, मेरा भी कमरा अलग था उसमें...
तुमने उसमे बीच की दिवारों को तोड़ दिया...
उन नन्ही हाथों से एक प्यारा सा रिश्ता जोड़ दिया...
वो सपनों का घर आज मैंने साकार कर दिया...
उन दोनों कमरों को आज मैंने एक कर दिया...
मगर आज भी वो घर कितना खाली-खाली लगता है...
रहते हैं बहुत से लोग, मगर तुम्हारी जगह आज भी कितना खाली-खाली सा लगता है...
तुम आओगी एक दिन यही सोचकर बैठें हैं...
उस कमरे के बिस्तर को आज भी समेट कर बैठें हैं...
इंतजार आज भी है, कल भी था, और हमेशा रहेगा...
तुम आओगी एक दिन, ये एहसास हमेशा रहेगा...
वो मेरी ज़िन्दगी का पहला लव लैटर था... जिसे मैंने आज तक भी संभाल के रखा है...मेरी ज़िन्दगी के लिए एक सीख थी...वो मुझे नहीं मिल पाई... उसकी शादी हो गई...मगर मैंने मुड़कर दोबारा उसे कभी नहीं देखा...आज भी मोहब्बत है...कल भी था और हमेशा रहेगा...

वो कहीं और चली गई...और मैं कहीं और चला गया...

प्यार के इस खेल में मैं तो हार गया क्योंकि उसका हरना मुझे पसंद नहीं था...

क्योंकि वो मेरा पहला इश्क़ था...

Monday, 3 March 2025

आज कल मुझे ख़्याल...बड़े अच्छे आते हैं...
सोता हूं तो... ख़्वाब बड़े अच्छे आते हैं...

नहीं यकीं तुम्हें तो...आज़मा कर देख लेना...
कोई मुझसे सवाल तो करें... जवाब बड़े अच्छे आते हैं...

आशीष गुप्ता....

Saturday, 1 March 2025

हां मुझे पसंद है....

हां मुझे पसंद है...

तुम्हारा मासूम सा चेहरा, जिसे देखकर मेरे दिन की शुरुआत होती है...

हां मुझे पसंद है...

तुम्हारी प्यारी सी मुस्कान, जिसे देखकर  मेरे दिल को सुकून मिलता है...

हां मुझे पसंद है...

तुम्हारी झील सी आँखें, जिसमें बस डूब जाने का मन करता है...

हां मुझे पसंद है...

तुम्हारे माथे की बिंदिया... जो तुम्हारे सादगी को और खूबसूरत बनाती है...

हां मुझे पसंद है...

तुम्हारी आंखों का काजल, जो निगाहों से तीर छोड़ती हो..

हां मुझे पसंद है....

तुम्हारा रूठना, तुम्हारा मानना...

तुमसे बेवजह बात करना...

तुम्हें परेशान करना...और

तुम्हारा इंतजार करना...

हां मुझे पसंद है...तुम और सिर्फ तुम...

आशीष....

Tuesday, 4 February 2025

आज सुबह उठते ही तुम्हारा ख़्याल आया...
जुबां खुलते ही लबों पे तुम्हारा नाम आया...
सोया था जिसे याद कर नींद की आग़ोश में...
आज आया भी उसी का ख़्वाब बेहिसाब आया...

आशीष...

हर ख़्वाब हक़ीक़त हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हर मोहब्बत पूरी हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हम तुम्हें पसंद करतें हैं ...ये और बात है... त...