ज़िन्दगी के भीड़ में अक्सर
कोई ना कोई मिल जाता है...
अजनबी होते हैं मगर
कोई ना कोई दिल को भा जाता है...
सोचता हूं अक्सर
ये रिश्ते बनाता कौन है...
दो अजनबी को
एक दूसरे से मिलाता कौन है...
ना उसे कुछ पता मेरे बारे में
ना मुझे कुछ पता उस सख्स के बारे में...
बस थोड़ी सी बात...
और थोड़ी सी मुलाक़ात
फिर निग़ाहों का यकीन
और दिल को थोड़ा सा विश्वास...
आशीष गुप्ता...
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