Sunday, 28 July 2019

गाज़ियाबाद शहर...





ज़िन्दगी में इतनी उलझनें थी कि फैसला क्या लूं कुछ समझ में ही नहीं रहा था.... ये ग्रेजुएशन पास करने के बाद उम्र की जो दहलीज होती है ना कठिनाइयों से भरी पड़ी होती है... यही उम्र आपको आपके भविष्य की सीमा तय करती है...
यही उम्र आपको खुद को परखने का हुनर भी सिखाती है कि आपमें कितनी काबलियत है...
अब आप बड़े हो जातें हैं क्या करना है, क्या पाना है, किसे खोना है, प्यार, मोहब्बत, जज़्बात, धोखा, दोस्ती सब इसी उम्र में देखने को मिलता है....

ऐसे ही हमारी भी कहानी है कुछ नए दोस्तों की जिनकी मिशाल में शब्दों से तो नहीं कर सकता...
मगर मेरे दिल में उनकी जो एहमियत है उसे कोई पूरा भी नहीं कर सकता...

घर से दूर जाना भी किसी ससुराल जाने से कम नहीं...
लड़की की शादी होने के बाद अपना घर छोड़कर ससुराल की दहलीज पर कदम रखती है... इधर हम अपना भविष्य तय करने के लिए अपना ही घर परिवार छोड़कर किराए के घर में रहने की तैयारी कर लेते हैं... ये हाल सिर्फ मेरा ही नहीं उन सभी लोगों का है जिनको अपना फ्यूचर घर से बाहर किसी अंजान शहर में रहकर दिखता है...

दुःखी मन से घर से निकलते हैं... आंखों में आशु की धार किसी लहर से कम नहीं और धड़कन कि रफ़्तार किसी तूफ़ान से कम नहीं...
ऐसा लग रहा था 50 किलो का बोझ सीने पे रख कर घर से मंजिल को पाने के लिए निकल रहा हूं...

मां के आंखों में आशु और मेरी सांसों की सिसकियां खत्म ही नहीं हो रही थी... मां से दूर जाना जैसे जिंदगी से दूर जाने के बराबर था...
ऐसा लग रहा था कि शरीर से आत्मा ही निकाल गई हो...
जब हमें इतनी तकलीफ़ होती है तो सोचो एक मां को अपने आंखों के सामने से बेटे को जाते देख...कितना तकलीफ़ देता होगा...
ये एहसास तो मै शब्दों से बयां ही नहीं कर सकता...

पिता जी तो इतने हिम्मतवाले होतें है कि अपने अंदर का दर्द बाहर ही नहीं लाते... उनको भी एहसास होता है...उनको भी फिक्र होता है... उनके भी आशु निकलते है... लेकिन बस जाहिर ही नहीं कर पाते है...
इसलिए कि कहीं बेटा कमज़ोर ना पड़ जाए... कहीं किनारे अकेले में रो लेते है... लेकिन सामने एहसास तक ना होने देते हैं...

बस इतना कह सकता हूं कि...

इस दुनिया में जिसने मुझे अपने पैरों पे खड़े होना सिखाया है...
उंगलियां पकड़कर जिसने मुझे चलना सिखाया है...
जिंदगी की हर कठिनायों से मुझे डट कर लड़ना सिखाया है...
वो मेरे माता पिता ही है जिसने मुझे जिंदगी को जीना सिखाया है...
उनके इस एहसान इस ममता को मै ज़िन्दगी भर ना चुका पाऊंगा...
लूंगा सात जन्म लेकिन फिर भी ना उतार पाऊंगा...

निकल पड़ते हैं ज़िन्दगी के सफ़र में एक नए मंजिल की तलाश में...

पहुंचते है रेलवे स्टेशन प्रतापगढ...वहीं गंदगी का ढेर, वहीं टूटी फूटी पटरी, वहीं भागते लोग, सब इस इतंजार में कि कहीं मेरी ट्रेन ना छूट जाए...
तब हम भी जनरल डिब्बे में ही सफर करते थे...
स्लीपर में पैसे बहुत लगते है इसलिए कभी टिकट बुक नहीं किया...

टिकट लेते है ट्रेन का इंतजार करते है ...
आदमी टाइम से पहले पहुंच जाता है मगर भारतीय रेल कभी भी टाइम पे नहीं दिखती है हमेशा की तरह लेट...
आखिर ट्रेन की आवाज़ सुनाई ही पड़ती है कि कौन पहले सीट रोक कर बैठेगा उसी में भागादौड़ी लग जाती है....

धक्के खा खाकर कैसे तैसे सीट पर आखिर बैठ ही जाते है... एक सीट पर 3 लोग बैठते है लेकिन यह मामला कुछ और था
8 लोगों को कौन बैठाता है यार...

उफ्फ ये कश्मकश भरी ज़िंदगी...

पूरी रात इधर से उधर, उधर से इधर, धक्के मुक्के सहने के बाद आखिर पहुंचते है गाज़ियाबाद...
जहां मुझे पत्रकारिता की पढ़ाई करनी है और एक सच्चा और अच्छा पत्रकार बनना है...

उस समय पत्रकार बनने का जुनून का लेवल बड़ा हाई था...

राजकीय पॉलीटेक्निक कॉलेज में हम दाखिला करा ही लेते हैं...
अजनबी सा कॉलेज अजनबी से लोग, कोई पहचानता ही नहीं,
सारे लोग एक दूसरे का चेहरा ही देख रहे हैं...
ऐसा लग रहा था कि किसी ज़ू पार्क में आ गए हों जहां भिन्न भिन्न प्रकार के जीव जन्तु एक दूसरे को निहार रहे हों...

वो कहते हैं ना...

अजनबी सी दुनिया है अजनबी से लोग है...
अब रहना इनके साथ है बस यही अपने लोग है...

सबसे पहले मुलाक़ात होती है नए दोस्त टिंकू से...
जो दिखता थोड़ा पतला सा था लेकिन हेल्पफुल बंदा था...
हम भी अपना नाम बताते हैं...
आशीष गुप्ता प्रतापगढ़ से...और टिंकू बरेली से है...
कुछ देर मुलाक़ात होती है फिर कई सारे दोस्त बनते है...
श्याम, निपेंद्र शर्मा, राज, बस कमी थी तो किसी लड़की की लेकिन किसी भी लड़की दोस्त से मुलाकात नहीं हो पाती...

श्याम भी बहुत अच्छा था राज तो ताश की गद्दी में जोकर की तरह था कॉमेडियन सबको हसाता ही रहता...
निपेंद्र से बात होती है उससे मिलकर दिल को थोड़ा सुकून मिला....उसकी पर्सनॉलिटी भी अच्छी खासी थी....
थोड़ा सीरियस सा था लेकिन दिल का बहुत अच्छा...
हम दोनों एक दूसरे का नंबर लेते है फिर सब अपने अपने घर...

दस दिन बाद...

अब समय आ गया था हमसब को पत्रकारिता की पहली सीढ़ी चढ़ने का.... कॉलेज में एंट्री होती है... दिल में थोड़ा डर भी था... लेकिन डर को मार कर नए कॉलेज का मज़ा लेते हैं...  
सीनियर्स जूनियर्स रैगिंग सबकुछ...

मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि ये रैगिंग करते कियुं हैं....भईया सीनियर्स को जूनियर्स की रिस्पेक्ट करनी चाहिए ना की सब के सामने जलील...ये हमारा मानना है...

ऐसे ही हम निपेंद्र बैठे थे कि एक भाई साहब आते हैं...
सामने खड़े हो जाते हैं....
हम उन्हें देखते है और वो हमे... ये नैन मटक्का कुछ देर चल ही रहा था कि भाई साहब बोल पड़ते हैं...
हम सीनियर्स है और तुम बैठे हो, खड़े हो जाओ और अपना नाम बताओ...

एक बात तो समझ में आ गई कि इन सालों की यहां कोई रिस्पेक्ट नहीं है... जबरदस्ती इज्जत लेना चाहते है....
हमने भी बोल दिये... हम नाम नहीं बताते है... और ना हम खड़े हों रहें.. तुम्हे जो करना है कर लो...
तुम साले इन्टर पास कर कर के आए हो हम ग्रेजुएशन...
अबे तेरे हम सीनियर्स है निकल अब....

हद है वैसे यूपी के लड़कों से दूर ही रहना चाहिए ऊपर से हम भी ठहरें यूपी वाले...

ख़ैर क्लास में नए नए दोस्त बनते हैं..
टिंकू, राज, श्याम, निपेंद्र, सौरभ इन सब से तो मिल चुके थे कुछ लड़कियों से भी मुलाक़ात होती है..
दया, इतनी दयालु की पूछो ही मत...
अर्चना, आकांक्षा, वंदना, पारुल और तो नाम ही याद ना है....
धर्मेंद्र धीरज मोहित शाहनवाज दुर्गेश पांडे, वीर और लोगों से भी मुलाकात होती है..सब में कुछ ना कुछ टैलेंट था...बड़े अच्छे दोस्त हैं...
मोहित और धर्मेन्द्र की तो बात ही अलग थी दोनों ने मेरी ज़िन्दगी में बहुत साथ दिया...

निशा मैम, जैशल सर हमारे टीचर्स है जो कि बड़े ही विद्वान है जैशल सर की तो बात ही अलग है...
दो शब्दों के बीच का अंतर बख़ूबी तरीके से बताते थे सारे बच्चों को यूं ही समझ में आ जाता....
वैसे पढ़ाते कम थे और फेंकते ज्यादा और हमारा काम था लपेटना... कौन कितना लपेट सकता है....

हम निपेंद्र और वीर रूममेट थे... गजब की जोड़ी थी...
एक सिक्के के दो पहलू नहीं तीन पहलू थे...खाने पीने का हिसाब निपेंद्र देखता था...वीर भाई तो आटा लगाने में बड़े माहिर थे....और हम आलू टमाटर की सब्जी बनाने में...
वीर इतना टैलेंटेड पूछो मत... पढ़ाई लिखाई सब में महारत हासिल है, ऊपर से इतना हैंडसम भी गोरे चिट्टे हम तो बीच के थे...सवला रंग भगवान श्री कृष्णा जी का...

टिंकू गौरव साथ में रहते थे तो दुर्गेश अनुराग साथ में रहते थे...
दुर्गेश अनुराग हमेशा ही लड़ते रहते... सास बहू की तरह... कभी खाने को लेकर तो कभी काम को लेकर तो कभी झाड़ू पोछा को लेकर...बड़ा प्यार था दोनों में...

दुर्गेश में थोड़ा स्लो मोशन था... हर काम को बड़े आराम से धीरे धीरे से करते... बहुत ही सीधा मगर माइंडेड इतना कि तुम हिस्टरी में कितना भी पीछे जाकर पूछ लो सब कुछ पूरा डीटेल में बता देता था... इतना तो इतिहास लिखने वालों को भी नहीं मालूम था जितना हमारे दुर्गेश भैया जी जानते थे...

कुछ दिन बीतने के बाद हम सब क्लास में बैठे ही थे कि अचानक से किसी की इंट्री होती है...
सामने ख़ूबसूरत सी लड़की... व्हाइट शूट में... नाक थोड़ी लम्बी गोरी सी धाकड़ सी...
कनपुरिया स्टाईल में मैडम का आगमन होता है...
कहां से आयी है, नाम क्या है, सबके ख्यालों में यही सब गूंज रहा था...

ऊपर वाले ने कुछ ख़ूबसूरत बनाया है तो वो है लड़की...
हम लड़के तो बस बन गए...जिनपर भगवान ने किसी भी प्रकार की कोई भी मेहनत नहीं की...बड़ी जल्दबाजी में बना दिया...

हमसब की नज़र उस लड़की पर और उस लड़की की नज़र क्लास के सबसे बैक बेंच पर बैठे हुए लड़के पर सुनील...
अबे कांटे लगे हैं क्या... हमसब लड़कों में इतने हैंडसम लड़के तुम्हे ना दिखे क्या...मैडम...
जो तुम उस लड़के से बात कर रही हो हद है...
उस समय तो सुनील के भाव भी बढ़ गए थे आख़िर वो लड़की उनसे जो बात कर ली...भाई साहब ने अपना टिफिन भी खिला दिया...अरे भाई अब बस भी कर... कुछ हम सब के लिए भी तो छोड़ देता यार...

धीरे-धीरे आखिर सबसे परिचय होती है...मुलाक़ात भी होती है...
शिल्पी मिश्रा उसका नाम था...

अब आती ही बारी शिल्पी को इंप्रेस करने की...
सबने बात करनी चालू कर दी...
कोई बोलता है हम है तुम परेशान मत होना...
तो कोई बोलता है सारे नोट्स हम बनवा देंगे...
यार अब हम क्या बोले बताओ...

यार में थोड़ा शर्मिला टाइप का था और लड़की से थोड़ा दूर ही भागता था... दिल में ख्याल था कि काश हमसे भी बात करती लेकिन कहां ऐसा होता...

वो कहते है ना...

दिल की बात जुबां पे लाए तो लाए कैसे...
दिल तुमसे भी बात करना चाहे लकिन बताएं तो बताएं कैसे...

वैसे कुछ दिन बीतने के बाद आख़िर हम सब बहुत ही अच्छे दोस्त बन ही गए... उन्ही के साथ हसना... उन्हीं के साथ रोना... हसीं मज़ाक सबकुछ...
वीर टिंकू दुर्गेश शिल्पी के सबसे अच्छे दोस्त थे... मेरा नाम भी अच्छे दोस्तों के लिष्ट में आ ही गया...

वो कहते है ना...

आज संजी जब दोस्तों की mahphil तो कयामत आ गया...
सारे दोस्तों में हमारा जिक्र पहले ही आ गया...
हैरान तो हम भी हो गए एक पल के लिए ये सोचकर...
तेरे नाम से पहले मेरा नाम जो आ गया...

घर से बाहर हमें देखने वाला कोई नहीं होता... बस कुछ दोस्तों का ही सहारा होता है... जो हमारी ज़िन्दगी का एक पहलू बन चुके थे... हम जानते है कि हर शहर अजनबी होता है... लेकिन जहां दोस्त अच्छे होते हैं वो शहर भी अपना हो ही जाता है...
घर से इतना दूर जहां हमारा कोई नहीं था बस वहीं दोस्त ही हमारा परिवार बन चुके थे...

घर से कभी बाहर नहीं निकले ही नहीं है... ये ज़िन्दगी का पहला मोड़ था जो हमे घर से बाहर रहना ही पड़ गया...

घर की बहुत याद आ रही थी... हमसब को ही... मुझे तो कुछ ज्यादा ही... लड़कों के आंखों में आशु बड़ी मुश्किल समय में निकलता है...और घर से बाहर रहना ही किसी मुश्किल से कम नहीं...
कभी अकेले रो लेते... तो कभी दोस्तों के साथ रो लेते...
एक दम सहम से जाते थे...

वो कहते हैं ना...

ज़िन्दगी जीने के लिए जिंदगी छोड़ आया हूं...
चंद पैसे कमाने के लिए घर छोड़ आया हूं...
एहसास तब हुआ जब घर से बहुत दूर निकल आया हूं...
अपना घर छोड़ कर किराए के घर में रहने आया हूं...
यही सोचता हूं तो ये ख्याल आ जाता है...
आंखें बंद करता हूं तो वो सवाल आ जाता है...
वहां की रात कितनी अलग है...
यहां की रात कितनी अलग है...
जब भूक मुझे लगती थी तो वो खाना याद आता था...
मेरी मां के हाथों का वो छोटा सा निवाला याद आता था...

फिर भी दिल को संभाल लेते और खुद को भी संभाल लेते की... बस दो साल की ही तो बात है गुज़र जाएंगे...

अगले सुबह हम सब कॉलेज जाते हैं... क्लास में बैठते हैं... अब बारी आती है लेक्चर सुनने की वो भी जैशल सर की... बेचारे इतने सीधे थे कि क्या बोलूं कॉलेज की सारी जिम्मेदारी हमारे प्रिंसिपल सर ने इनपर दे रखी थी...
ये मै नहीं कहता ये तो हमारे सर ही बोलते हैं...
लेक्चर शुरू होता है टॉपिक कुछ याद नहीं...
जब तक पढ़ाते बड़े ध्यान से सब सुनते है...जैसे कोई बाबा प्रवचन दे रहे हो... हमसब श्रद्धालु मौन होकर सुन रहे हैं...
अब आगे क्या होने वाला है...और इसके बाद...अच्छा सर फिर क्या हुआ...

करीब दो घंटे सुन ने के बाद बोलते हैं....
सब समझ में आ रहा है ना...
हम सबका भी भेाैकाल टाईट है...हां सब समझ में आ रहा है...
आखिर पूछ ही लेते हैं हमसे... इसका मतलब क्या है...
हम उन्हें देखते वो हमें... फिर में शिल्पी को देखता वो किसी और को देखती अबे हद है...वो धीरे धीरे कर वो सबसे पूछते है... लेकिन किसी को भी कुछ नहीं मालूम...

राज बोलता है आप जो पढ़ा रहे थे समझ में ही नहीं आया सर... हट मुंहफट इंसान कुछ भी बक देता था...

वैसे राज को पढ़ाई में कम ही मन लगता था... वो क्लास में सबसे एंटरटेनमेंट करने वाला बंदा था...और मेरे लिए बहुत खास... मुझे तो बहुत मानता है...कभी भी किसी भी मुसीबत में मेरी हर तरह की हेल्प करने वाला दोस्त...

हर क्लास में एक ऐसा बंदा जरूर होता है जो थ्री इडियट्स का
साइलेंसर जरूर होता है...कहीं पीछे से आवाज़ आती है सर हम बताएं क्या...भाई साहब ने बता दिया परिभाषा हद है... सबका ख्याल तो रख लेते यार...

आखिर सर ने बोल ही दिया तुम सब के सब नालायक हो... अक्ल नहीं है तुम सब में...
एक ये लड़का क्या नाम है बेटा...
सर अविनाश...
कितना सटीक तरीके से बता दिया...
तब से अविनाश जी हमारे सर के चहेते हो गए...

हमारा सिद्धांत है समाज को साथ में लेकर चलना चाहिए
अविनाश भाई समाज से दूर थे...

हम सारे दोस्त कभी घूमने के बहाने इकट्ठा होते... तो कभी मूवी देखने के बहाने... तो कभी कल्लू चाय वाले की दुकान पर चाय पीने के बहाने...तो कभी बिनावजह ही पार्टी करने के बहाने... किसी रेस्टोरेंट में ठहाका मारते मिल जाते थे...
पेमेंट का हिसाब वैसे टिंकू या वीर ही रखता था हमारे मुनीम जी जो ठहरे...बाकी हिसाब हमसब बाद में कर लेते थे...

दो साल गाज़ियाबाद में पढ़ाई लिखाई मौज मस्ती करते कब निकल गए कुछ मालूम ही ना पड़ा...

एग्जाम की डेट भी पास आ जाती है सब लोग तैयारी में जुट जाते है...मेरा इतना पढ़ाई में मन नहीं लगता था तो मै जल्दी सो जाता.... बाकी सारे दोस्त लगे रहते पढ़ाई करने में...

एग्जाम के आख़िरी दिन अचानक से मुझे फीवर आ गया था...
बहुत तेज़... दवा भी मेरे पास ना थी... पूरा शरीर कांप सा गया था...रात का समय था कोई मेडिकल स्टोर भी नहीं खुला था... वीर निपेंद्र दोनों ही परेशान हो गए थे...
वो कहीं किसी मेडिकल वाले से बहुत रिक्वेस्ट कर दुकान खुलवाते हैं और कुछ दवा वहां से लेकर आते हैं...
मै दवा खाता हूं.. फिर लेट जाता हूं...
मैंने दोनों से बोला... भाई तुम सो जाओ कल एग्जाम भी है... लेकिन निपेंद्र और वीर ने मेरी एक ना सुनी...और सारी रात मेरे सर पर कपड़े भिगो कर पट्टी करते रहे... और वीर मेरे पांव को दबाता रहा तो कहीं पंखे कर रहा था...
लाइट भी नहीं थी उस दिन मुझे भी नींद नहीं आ रही थी... लेकिन इन दोनों का इतना ख्याल देख कर में भी रो पड़ा...इतना ख्याल कौन करता है यार...
एग्जाम की परवाह ना कर पूरी रात मुझे ठीक करने में ही लगा दिया... ज़िन्दगी में इस बात का एहसास हो गया कि मैंने कुछ अच्छा कर्म ही किया होगा जो आज वीर और निपेंद्र जैसे दोस्त मिल गए... जो भाई से बढ़कर है मेरे लिए...

हमारी दोस्ती में प्यार था... हमारी दोस्ती में मिठास था... हमारी दोस्ती में एक अपनापन था...
बस कुछ नहीं था वो....(मतलब)...
दोस्ती होती है दिल से ना की किसी (मतलब) से...
दोस्ती में अगर (मतलब) शब्द आ गया तो वो दोस्ती नहीं वो दिखावा है...

एग्जाम भी कैसे तैसे पूरा होता है...

गाज़ियाबाद मेरे ज़िन्दगी के सफ़र में सबसे अच्छा शहर रहा...
ज़िन्दगी में अब टाइम आ गया था बिछड़ने का...

बड़ा ही इमोशनली टाइम था... लोग एक दूसरे को देख देख कर ऐसे रो रहे थे मानो आज के बाद कभी मुलाक़ात होगी ही नहीं... में खुद भी रोने लगा था कियुकिं आज ये परिवार अलग  हो रहा था...वीर, टिंकू, निपेंद्र,राज, शिल्पी, दुर्गेश, धर्मेन्द्र, धीरज, मोहित, दया और भी सारे दोस्तों से बिछड़ना वाकई बुरा सा लग रहा था...दया भी बहुत इमोशनल हो गई...
शिल्पी तो बहुत रोई उसे तो समझाना भी मुश्किल था...

वो कहते है ना...

लग जा गले की फिर ये हसीं रात हो ना हो...
शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो ना हो...
हमको मिली है आज ये घड़ियां नसीब से...
जी भर के देख लीजिए हमको करीब से...
फिर आपके नसीब में वो रात हो ना हो...
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो ना हो...

माहौल तो वैसे ही गम में था उसी में आखिर वीर भाई साहब ने फिर तो कयामत ही ढा दी....
ठहरे जो सिंगर उन्होंने भी दर्द भारी आवाज में नगमे छेड़ दिए...

तेरे जैसा यार कहां कहा ऐसा याराना...
याद करेगी दुनिया तेरा मेरा अफसाना...

अब तो खुद को भी रोने से कोई नहीं रोक सकता... बस गले लगे सब और रोना चालू... ये प्यार था... ये जज्बात था... ये एहसास था...जो आज आशु बनकर निकल रहे थे...शिल्पी तो इतना रोई, इतना रोई की बता नहीं सकता... आख़िर रोए भी कियुं ना... हमसब अलग जो हो रहे थे...

शिल्पी मुझे बहुत मानती थी... हालांकि हम ज्यादा बात नहीं कर पाते थे... लेकिन पता नहीं कियुं एक दिल का रिश्ता सा बन गया था... वो कहते हैं ना कि हर दोस्तों के ग्रुप पे एक दोस्त ऐसा जरूर होता है जो सबसे करीब होता है...
वो थी वो...

मेरे दिल का घर दिखने में बहुत छोटा है मगर इस घर में सबकी एहमियत बहुत है... जिसको कोई भी पूरा नहीं कर सकता...
इतना प्यार देख कर ज़िन्दगी में एक सुकून तो मिला...
कि आज ज़िन्दगी में कुछ मिला हो या ना हो लेकिन इतने अच्छे दोस्त मिल गए...

शिल्पी कानपुर, वीर कानपुर, टिंकू बरेली, दुर्गेश पटना, दया खुर्जा, गौरव बरेली, धीरज मुरादाबाद, शाहनवाज मुरादाबाद, राज लखनऊ, निपेंद्र मुरादाबाद, धर्मेन्द्र आगरा, मोहित मथुरा और हम प्रतापगढ़....

सब अपने अपने घर चले गए....

गाज़ियाबाद की गलियों में हमारी यादें आज भी वैसे की वैसे ही बसी हुई है... जहां हम सब रोज़ घूमते थे...
वो किराने की दुकान,वो चाय का ठेला, वो कभी पार्टी करने पर महंगा खाने वाला रेस्टोरेंट, सब कुछ आज भी वैसे ही याद आता है...

2011 से लेकर 2019 तक आज 8 साल हो गए मगर आज तक हमसब का प्यार तनिक भी कम नहीं...शिल्पी वीर निपेंद्र से मिलने का बहुत मन करता है बस जिंदगी कब इन दोस्तों से
मिलाएगी इसी के इंतजार में आज भी आस लगाए बैठे है...वीर निपेंद्र मोहित धर्मेन्द्र से तो कॉलेज से अलग होने के 4 साल बाद तो मुलाक़ात हो चुकी थी...
राज से भी मेरी मुलाक़ात हुई लखनऊ शहर में मिलकर वाकई बड़ा सुकून मिला...उसके चक्कर में रेड लाइट पार करने पे चालान भी कट जाता...शुक्र है मीडिया का बच गए...बड़ा मस्त बंदा है यार...

मोहित और धर्मेन्द्र आगरा में ही साथ थे...वैसे अगर मीडिया लाइन की बात करूं तो धर्मेन्द्र का बहुत बड़ा योगदान रहा...न्यूज चैनल में उसी ने ही सबसे पहले मेरा लगवाया था... फिर नोएडा से निकलने के बाद मोहित ने ही आगरा में मेरा साथ दिया था...शाहनवाज टिंकू टोटल न्यूज में मेरे साथ रहा...फिर में हैदराबाद आ गया... हैदराबाद में मेरे साथ ही रहता है...
टिंकू भी मेरा बहुत ख्याल रखता है... वो भी एक लेखक है... लिखता अच्छा है...

लेकिन शिल्पी से मिलना आज तक नहीं हुआ...उसकी तो शादी भी हो गई है भतीजा भी एक है क्यूट सा...मै हैदराबाद में बस गया और वो बैंगलोर में...

हमारी बात रोज़ होती है कभी व्हाट्सअप पर तो कभी फेसबुक या कभी वेडियोकॉलिंग...
वो मेरी सबसे अच्छी फ्रेंड है बस कभी मुलाक़ात होगी तो सोचते हैं उस समय हमारा रिएक्शन क्या होगा लेकिन मुलाक़ात कब होगी ये नहीं मालूम...वो मुझसे कभी कुछ नहीं छिपाती और ना उससे मै...हर किसी के लाइफ में एक सीक्रेट दोस्त जरूर होता है वैसे ही मेरे लाइफ की वो सीक्रेट दोस्त ही है...
जो मेरी जिंदगी के हर कहानी से रूबरू है...हम दोनों का विश्वास ही हमारी दोस्ती का मिसाल है...

ये कुछ लाइनें उन्हीं दोस्त लिए ही...

आज अचानक से ये ख्याल आ गया...
लगता है पुराने दोस्तों से मिलने का दिन करीब आ गया...
जो दूर तो बहुत हैं मगर दिल के इतना करीब है कि...
याद करते ही उनकी तस्वीर आंखों सामने आ गया...
जब मिलेंगे तो वो दौर कुछ अलग ही होगा...
सबके चेहरों पे मुस्कान भी कुछ अलग ही होगा...
अब बस इतंजार है वो समय आएगा कब...
हम बिछड़े दोस्तों को आखिर मिलाएगा कब...

बस इतनी सी थी कहानी....

आशीष गुप्ता....







2 comments:

  1. Kya bat h ek ek baat ab tak yad h tumhe, rula diya bhai tumne..bahut bahut achha likha h
    Misss u all friends.

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हर ख़्वाब हक़ीक़त हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हर मोहब्बत पूरी हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हम तुम्हें पसंद करतें हैं ...ये और बात है... त...