आज सोचता हूं तो सहम सा जाता हूं...
लिखता हूं तो कांप सा जाता है...
ना तो शब्द ही है मेरे पास...
ना ही किसी शब्द का अर्थ ही है मेरे पास...
दिल में इतना गुस्सा भरा है कि कुछ कह ही नहीं पा रहा हूं...
अपने दर्द को भी ख़ुद से बयां कर ही नहीं पा रहा हूं...
बस एक आवाज़ है जो गूंजती है चिल्लाती है...
तड़पती है और बिखर जाती है...
उसने तो सोचा भी नहीं होगा कि उसके साथ क्या होने वाला है...
ज़िंदगी में उसके कितना बड़ा तूफ़ान आने वाला है...
उस काली रात को उनलोगों ने उसकी आख़िरी रात बना डाला...
26 साल की बच्ची 26 मिनट में हमेशा के लिए ही सुला डाला...
कैसे कैसे उस लड़की ने उस दर्द को झेला होगा...
उन कुत्तों ने कैसे कैसे उसके जिश्म को नोचा होगा...
कितना तड़पती होगी यार कितनी चिल्लाई होगी...
भाई भईया कह कर कितना गिड़गिड़ाई होगी...
इतनी हैवानियत तुम लाते कहां से हो...
इतनी वैहशियत तुम दिखाते कहां से हो...
भाई बनकर गए थे ना तुम शैतान बन गए...
इंसान तो तुम भी थे यार हैवान कियू बन गए...
हवस की इतनी ही भूक थी तो घर में ही निकाल आते...
गर इतनी ही हिम्मत थी तो अपनी बहन को ही जला आते...
आज मै दुआ करता हूं कि मेरी हर एक ख्वाहिश अधूरी हो जाए और बस एक ख्वाहिश पूरी हो जाए...
तुम हैवानों को इतना दर्द मिले की दर्द को भी दर्द का एहसास हो जाए....
आशीष गुप्ता...
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