आखिर कौन हो तुम...
जो मेरे ख्यालों में आ जाते हो...
मेरी नींदों को चुरा जाती हो...
क्या तुम कोई ख़्वाब हो...या कोई हक़ीक़त...
आखिर कौन हो तुम...
हर पल हर वक़्त बस... तेरा ही ज़िक्र होता है...
सुबह हो या शाम हो बस... तेरा ही फिक्र होता है...
ऐसा लगता है कि मै ख़ुद को ही भूल गया हूं...
ख़ुद से ही बातें करने लगा हूं....
आईना देखता हूं तो, तुम्हारा ही चेहरा दिखता है...
उस चांद को देखता हूं तो, तुम्हारा ही अक्स दिखता है...
ये कोई पागलपन है...या मेरी मोहब्बत...
रात की तनहाई में जब हवाएं, मेरे बगल से गुजरती है...
ऐसा लगता है तुम मुझे छू रही हो...
मेरे हाथों में तेरा हाथ होता है...
ज़िन्दगी के सफ़र में कुछ पल का साथ होता है...
वो सोकून देता है, तुम्हारे पास होने का...
एक एहसास देता है, तुम्हारे साथ होने का...
काश ये पल हमेशा के लिए ही रुक जाता...
सब कुछ वहीं थम सा जाता...
लेकिन ये तो बस एक ख़्वाब था...
जो हर बार की तरह आज फिर टूट गया...
फिर से तुम दूर हो गई...और मै फिर से टूट गया...
आशीष गुप्ता...
No comments:
Post a Comment