गर्मी का मौसम कड़कती धूप, सूरज की चिलचिलाती रोशनी, ज्वाला की तरह धधक रही थी। मैं रोड के किनारे बैठा बस का इंतजार कर रहा था। मुझे ऑफिस जाना था और बहुत देर हो गई थी। कई बसें गुज़र गई लेकिन जहां मुझे जाना था वहां की बस का कोई पता ही नहीं। प्यास भी बहुत तेज़ लग रही थी। लेकिन आस पास कोई दुकान भी नहीं था जहां मैं पानी पी सकूं। वहीं बगल से एक भिखारी गुजरता है और मेरे पास आकर कुछ पैसे मांगता है खाने को। गर्मी के मारे मेरा दिमाग वैसे ही गरम था ऊपर से ये भिखारी वहां से जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने उसे बहुत भगाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं गया। मैं वहां से उठकर खुद ही चला गया। मैं जहां भी जाता वो फिर मेरे पास आ जाता।
भिखारी - कुछ पैसे दो ना भूख़ लगी है
मैं - अरे जा यार पता नहीं कहां से आ जाते हैं
भिखारी - बहुत भूख लगी है, सुबह से कुछ नहीं खाया हूं
मैं - तो क्या करूं मैं ख़ुद नहीं खाया हूं, तू जा भाई
भिखारी की आंखों में दर्द था, भूख था, लेकिन मुझे कुछ समझ ही नहीं रहा था।
मैंने उसे वहां से भगा दिया वो थोड़ी दूर जाकर तपतपाती धूप में बिना चप्पल के जमीन पर जाकर बैठ जाता है। बहुत लोग वहां से गुजरे सभी से वो पैसे मांगता लेकिन किसी ने भी उसे पैसे या खाने को नहीं दिए।
मुझे भी थोड़ी भूख लग रही थी, मैंने ऑनलाइन खाना बुक किया और कुछ देर इंतजार करता हूं। मेरी नज़र बार बार उस भिखारी पे ही चला जाता वो वहीं बैठा हर किसी से पैसे मांगता। मेरे दिमाग में बस यहीं चलता ये लोग भी भिखारी के भेष में लोगों को ठगते रहते हैं। साले हमसे तो ये भीख मांग मांग कर कमा लेते हैं। बस नाटक करते रहते हैं पैसे मांगने का भिखारी कहीं के।
फ़िलहाल मेरा खाना आ जाता है और मैं खाने लगता हुं वो भिखारी मुझे बार बार देखे जा रहा था और मैं उसे इग्नोर कर रहा था। मैंने खाना खाया, पानी पीया और फिर कुछ देर में मेरी बस आ जाती है और मैं बस में बैठकर निकल जाता हूं। वो भिखारी वहीं बैठा उम्मीद लगाए की कोई आएगा और उसे कुछ पैसे या खाना देगा इसी उम्मीद के साथ वहीं बैठा रहा।
मुझे साउथ एक्स में रुकना था। कन्डेक्टर मेरे पास टिकट के लिए आता है।
कन्डेक्टर - भाई टिकट, कहां जाना है
मैं - साउथ एक्स
कन्डेक्टर - 60 रुपए
मैंने जैसे ही पैसे देने के लिए बटुआ निकाला, मेरा बटुआ गायब था। वो मेरे पास ही नहीं, मैंने हर जेब को चेक किया लेकिन नहीं मिला, बैग भी चेक किया उसमे भी नहीं था।
मैं इतना परेशान हो गया दिमाग ही काम नहीं कर रहा था।
मैं - कन्डेक्टर साहब मेरा बटुआ लगता है कहीं गिर गया मेरे पास तो पैसे ही नहीं
कन्डेक्टर - भाई पैसे नहीं तो यही यही उतर जाओ, तुम लोगों का यही बहाना होता है
मैं - कन्डेक्टर साहब प्लीज थोड़ा मैनेज कर लो, सच में मेरा बटुआ गिर गया
कन्डेक्टर साहब नहीं माने और बस रुकवा कर मुझे वहीं उतारने लगा, तभी एक भाई साहब ने बोला
कन्डेक्टर साहब पैसे मैं दे देता हूं, इनको चलने दो
मैंने उन भाई साहब को बहुत धन्यवाद दिया और बोला, भाई पैसे मैं आपको दे दूंगा, बहुत बहुत शुक्रिया।
भाई साहब - कोई बात नहीं यार इंसान को एक दूसरे की मदद जरूर करनी चाहिए, दुआ मिलती है।
मैंने मुस्कुराकर उन्हें धन्यवाद दिया और साउथ एक्स में उतर जाता हूं।
मेरे बटुआ में बहुत सारे पैसे थे और कुछ जरूरत के कागज भी। लेकिन अब कैसे मिलता कहा गिरा ये भी तो मुझे नहीं मालूम। फिलहाल मेरा दिन ही ख़राब था। मैं उस भिखारी को दिनभर कोषता रहा कि ना उसकी शक्ल दिखती और ना ही मेरे साथ ऐसा कुछ होता और मन में ख़ूब गालियां भी दी। किसी तरह पूरा दिन गुजरता है लेकिन मैं बहुत ही अपसेट था। मेरी आधी सैलरी उस बटुआ में था। मुझे क्रेडिट कार्ड का बिल जमा करना था। घर पैसे भेजने थे। कमरे का किराया देना था। अब कैसे ये सब होता। पूरा दिन यही सोचने में निकाल गया।
दूसरे दिन फिर ऑफिस के लिए उसी बस स्टैंड पे जाता हूं। बस का इंतजार करता हूं। कुछ देर बीत जाने के बाद वो भिखारी फिर मेरी तरफ आने लगता है। मैं उसे देखते ही गुस्से से चिल्लाता हूं। मेरे पास मत आना। फिर भी
वो भिखारी मेरे पास आ जाता है। मैं उसे धक्के मार के भगाने वाला ही था कि मेरी नजर उसके हाथ पे पड़ती है। उसके हाथ में मेरा बटुआ था। मैं देखकर shoked हो जाता हूं।
भिखारी - बेटा तुम्हारा बटुआ यहां पड़ा था। वहीं देने आया था, कल तुम यही भूल गए थे।
मैं - देख कर ख़ुद की नज़र में ही गिर गया था। वो बटुआ लेता हूं, उसमे देखता हूं तो पूरे पैसे थे। और सारे कागज़ थे। मैंने पूरे पैसे भी गिने उसमे एक रूपए भी कम नहीं था।
ये देखकर मेरे आंखों में आशु आ गए और उसे मैंने गले लगा लिया।
भाई मुझे माफ़ कर दो, मैंने तुम्हें कितना गलत समझा। तुम्हें खाने को भी कुछ नहीं दिया, दिन भर तुम्हें कितना कोसता रहा, कितनी बद्दुआएं दी, कितनी गालियां दी।
भिखारी - अरे बेटा कोई बात नहीं ऐसा तो मेरा रोज़ का है। कोई पैसे देता है तो कोई भगा देता है। हम भी बहुत मजबूरी में पैसे मांगते है, भूख हमे भी लगती है, सब पेट के लिए करना पड़ता है साहब, नहीं तो कौन भीख़ मांगना चाहता है। किसी के आगे हाथ फैलाना किसे अच्छा लगता है।
मैंने कहा भाई तुम चाहते तो पूरा पैसा रख लेते या मेरा बटुआ देते भी नहीं फिर क्यों दे दिया।
भिखारी - हम भीख मांगते है, इसका मतलब ये नहीं कि हमारा ईमान ख़राब है। इंसान को इंसान की मदद करनी चाहिए बस, भगवान जितना देगा उतने में ही हम संतुष्ट हैं। और आपकी भी जरूरत होगी, आप भी परेशान होंगे, इसलिए आपको वापस करने आ गया।
मैंने उसे कुछ पैसे देने चाहे लेकिन उसने मना कर दिया और वहां से चला गया। और जाते जाते एक बात कह गया।
लोग हमें जितनी बद्दुआएं देते हैं, हम भगवान से उन्हें उतनी ही दुआएं देते हैं, की वो खुश रहे हमेशा, तभी वो हम जैसे बहुत से लोगों की मदद कर पाएंगे, हमारी दुआएं हमेशा आपके साथ है।
उसकी ये बातें सुनकर मेरी आंखे नम हो गई, कितना बेरहम हो गया था मैं, जिसे मैंने इतनी गालियां दी, वहीं मुझे दुआएं दिए जा रहा था। ये मेरी ज़िन्दगी के लिए एक सीख थी।
हर इंसान को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए लेकिन हम सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं अपने लिए जीते हैं कभी दूसरों के लिए जिए तो मालूम पड़ेगा कि ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत होती है।
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