मोहब्बत कितना प्यारा शब्द है... लेकिन ये शब्द नहीं एक एहसास है... एक अपनापन है... जिसे हम महसूस करते हैं... मोहब्बत किसी से भी हो सकती है... इस पर किसी का ज़ोर नहीं होता... कोई जबरदस्ती नहीं होती...ऐसा भी नहीं की हम हर किसी से मोहब्बत कर लें... मगर जिस से भी मोहब्बत होता है वो दिल से होता है...एक बार मोहब्बत हो जाए तो दुनिया की हर चीज़ प्यारी लगने लगती है... वहीं मोहब्बत शायद मुझे भी हो गया था...
आज बयां करते हैं... अपनी मोहब्बत की दास्तां... जो एक अनजान सी लड़की से हुआ...जो सफ़र के दौर में हमसफ़र सी हो गई...
वो कहते हैं ना...
आजकल मोहब्बत भी तुमसे कुछ इस कदर सी हो गई है...
जैसे ज़िन्दगी के सफ़र में हमसफ़र सी हो गई है...
मुझे नए- नए जगहों पे घूमने का बड़ा शौक था... दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, जयपुर, हैदराबाद तमाम शहर घूम चुका था..फिर दोबारा दिल्ली के शहर में हमारा फिर से आना हुआ...जॉब के सिलसिले से...हैदराबाद से ट्रांसफर जो हो गया था...
हैदराबाद शहर के 4 साल काफी यादगार रहे... बहुत सारे दोस्त मिले...वहां की ज़िन्दगी वाकई मेरे ज़िन्दगी के सबसे हसीन पल थे...मगर कम्पनी वालों का कुछ भी भरोसा नहीं... जहां जिस शहर में हमारा दिल लग जाता है कंपनी वाले उस शहर को हमसे बेवफा कर देते हैं...और हमे उस शहर से दूर कहीं किसी और शहर से दिल लगाने के लिए भेज देते हैं....
वो कहते हैं ना...
तुम अजनबी बनकर आए थे और अपना बना दिया...
देख तेरी मोहब्बत ने मुझे फिर से अजनबी बना दिया...
वैसे सुना था मोहब्बत करना है तो दिल्ली आओ...
तो दिल्ली आ गए...
दिल से दिल्ली वालों का शहर में हमारा आगमन होता है...
वैसे मेरे लिए हर शहर अजनबी सा लगता है... मगर जहां दोस्त मिल जाएं तो वो शहर भी अपना सा लगने लगता है...कुछ दोस्तों के साथ दिन ऐसे बीत जाते मानों अभी दिन हुआ और फिर रात आ गई...समय का पता ही नहीं चलता....
सुबह ऑफिस जाते और शाम को दिल्ली की गलियों में दिल लगाने के लिए घूमने निकल जाते...
कुछ दिन बीत जाने के बाद...
हम लोग दिल्ली के कनॉट प्लेस में घूम रहे थे...वहां की शाम बहुत रंगीन होती है...ख़ूबसूरत ख़ूबसूरत लड़कियां... उफ़ इतनी हॉट सी... एक तो मेरे बगल से गुज़र गई... मुस्कुराते हुए...
दिल ने शायरी लिख दी...
इतने दिनों से जिसकी रह तकि...
वो सर झुकां के बगल से यूं गुजर गए...
मैंने झट से ही जैसे उनका नाम लिया...
पलटकर मुस्कुराया और बिना कुछ कहे ही चले गए...
ऐसा तो हमारा हाल था....
वैसे दिल्ली कि गलियों में आग है... कोई भी ख़ाक ही सकता है...
वहां की लाइटिंग इतनी प्यारी पूछो ही मत...खानों के आइटम...मतलब भूख ना लगी हो तो वहां के डिशेज देख कर भूख लग जाए...
ऐसे ही हम मस्ती कर रहे थे...भूख़ भी लग गई थी सोचा कुछ खाते हैं...फिर ये हुआ गोलगप्पे ही खा लेते हैं...
गोलगप्पे की दुकान पर पहुंचते हैं...
भाई गोलगप्पे खिला दो मस्त...
एक दो गोलगप्पे खाते ही हैं कि सामने एक लड़की अपनी दोस्त के साथ... गोलगप्पे पे गोलगप्पे खाए जा रही है..रुक ही ना रही है...हमारे तो 2-4 ही हुए थे...मैडम तो 10-12 खा ली थी...
मुझे लगता है उन्हें खट्टा और तीखा ज्यादा पसंद था...बार बार भैया और तीखा दो ना...और खट्टी चटनी अलग से डाल देना...
मैंने सोचा अरे इतना खट्टा खाता कौन है भाई... खा वो रही थी दांत मेरे खट्टे हो रहे थे... उफ़...
हम ठहरे यूपी वाले धीरे धीरे ही खाने का मज़ा लेते हैं...कौन सा हमे पहाड़ तोड़ना है....
मैडम के पास पैसे नहीं थे...उसकी दोस्त कहीं चली गई थी और उसका pocket भी उसी के पास था तो मैडम पैसे दे कहां से....
मैडम - भैया पैसे कैसे दूं मेरा बैग तो मेरी दोस्त लेकर चली गई है
गोलगप्पे वाले भाई - मैडम उधार तो चलेगा नहीं...60 रुपए हो गए हैं...ऑनलाइन कर दो कैश नहीं है तो...
मैडम - ऑनलाइन कैसे करूं... बैग में ही मेरा मोबाइल है...
गोलगप्पे वाले भाई - मैडम देख लो अभी बोहनी भी नहीं हुआ है... उधार नहीं दे पाएंगे...
मैडम परेशान ऊपर से हम लोग के सामने थोड़ा शर्म भी आ रही थी...और अपनी दोस्त को गाली पे गाली दिए जा रही थी...इसे अभी ही छोड़कर जाना था...
मैंने सोचा हम ही pay कर देते हैं...क्यों बेचारी परेशान हो...
मैडम रहने दो हम कर देते हैं...तुम बाद में दे देना...
मैंने - भाई टोटल कितना हुआ... मेरा और मैडम का मिलाकर पूरा देता हूं...
मैंने पूरा पेमेंट कर दिया...
मैडम - thanks sorry मैंने आपकी परेशान किया...
मैं - अरे कोई बात नहीं इतना चलता है...
मैडम - आप अपना नंबर दे दो मै पैसे भेज दूंगी...
मैंने अपना नंबर बता दिया....वैसे मेरा नाम आशीष गुप्ता है...
मैडम - मेरा नाम सुनीता गुप्ता
अरे वाह दोनों गुप्ता क्या बात मिलकर अच्छा लगा...
फिर हम दोनों अलग होते हैं...और वो अपने रास्ते हम अपने रास्ते....
हम लोग भी काफ़ी घूमने के बाद घर जाने का प्लान बनाते हैं.... और राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पे मेट्रो का इंतजार करते हैं....
तभी गोलगप्पे वाली मैडम भी सामने से दिख जाती है...
मैडम - अरे आप इधर कहां जा रहे हैं
मै - नोएडा तुम
मैडम - गुड़गांव वहीं रहती हुं
मैं - ओह ग्रेट, दोबारा मुलाक़ात होगी सोचा नहीं था...
तभी मेट्रो आती है हमारी हम निकल जातें हैं...
ये इत्तफाक था हम दोनों का मिलना... मुझे क्या मालूम ये मुलाकात हमारे ज़िन्दगी के लिए बहुत ख़ास होगी...
सफ़र में तो बहुत सारे लोग मिल जाते है... अजनबी चेहरों से घिरे होते हैं...मगर उन्ही चेहरों में कुछ चेहरा किसी अपनों को भी ढूड़ती हैं....
वो कहते हैं....
ज़िन्दगी के भीड़ में अक्सर...कोई ना कोई मिल जाता है...
अजनबी होते हैं मगर...कोई ना कोई दिल को भा जाता है...
सोचता हूं अक्सर...ये रिश्ते बनाता कौन है...
दो अजनबी को...एक दूसरे से मिलाता कौन है...
ना उसे कुछ पता मेरे बारे में...ना मुझे कुछ पता उस सख्स के बारे में...
बस थोड़ी सी बात...और थोड़ी सी मुलाक़ात...
फिर निग़ाहों का यकीन...और दिल को थोड़ा सा विश्वास...
कुछ दिन बीतने के बाद... मैं ऑफिस में ही था की अचानक से मैसेज आता है...
your account has been credit 60 rs.
ओह मैंने सोचा कौन महरबान हो गया... पैसे गिरे भी तो 60 रुपए... हद है... कुछ ज्यादा गिरता तो और मज़ा आता...
फिर एक text मैसेज...
हैलो मै सुनीता गोलगप्पे का आपने पैसे दिए थे ना वहीं भेज दी हूं...
मैंने कहा - thanku
फिर reply आता है...
सुनीता - आप कैसे है
मैं - अच्छा हूं
सुनीता - एक बात कहूं
मैं - हां बोलो
सुनीता - आप बहुत अच्छे हो... आपका behaviour बहुत अच्छा है...
मैं - बहुत बहुत शुक्रिया... वैसे आप भी बहुत अच्छे हो दिल से...और हां मुझे लगता है तुम्हें खट्टा और तीखा ज्यादा पसंद है...
सुनीता - अरे वाह आपको कैसे मालूम...
मैं - तुम्हारे गोलगप्पे के खाने से थोड़ा लगा...
सुनीता - अच्छा
ऐसे ही धीरे धीरे हम बात करते करते अजनबी से दोस्त हो ही गए और दोस्त भी बहुत ख़ास...
वो कहते हैं ना...
अजनबी सी दुनिया में अजनबी से लोग रहते है...
पर उन्हें क्या मालूम कुछ अपने लोग भी रहते हैं...
अब दोस्ती हो जाए और प्यार ना हो ये कैसे हो सकता है...
उसके बात करने का तरीका बहुत अच्छा था...एक अपनापन था...शुद्घ हिंदी में बात करती थी... चलो ये सही रहा मुझे हिंदी का थोड़ा ज्ञान तो हो गया...
वो भी जॉब करती है गुड़गांव में....और हम नोएडा शहर में...पास ही रहते थें... मुलाक़ात जल्दी नहीं हो पाती थी...
एक दिन मिलने का प्लान बनाते हैं... मैंने ऑफिस से तबीयत खराब है का बहाना कर लिया और गुड़गांव के कैफे में मिलने का प्लान बना लेते हैं...ये हमारी पहली मुलाकात थी...में दिल्ली की ट्रैफिक में फस गया था और मैडम पहले पहुंच गई थी और वो फोन पे फोन किए जा रही थी...
आख़िर 2 घंटे बाद मैं वहां पहुंचता हूं...मैडम अकेले मेज़ पे बैठे कर मेरा इतंजार कर थी... मैं दूर से देख रहा था...चेहरे पे थोड़ी झिझकपन... थोड़ा डर... और थोड़ी शर्म आराम से दिख रही थी...
मैं अचानक से उसके सामने बैठ जाता हूं... वो देख कर डर जाती है... वो डर के मारे मुझसे नज़र ही ना मिला रही थी... थोड़ा शर्मा कर पूछती है...
बहुत देर कर दिया आपने... कब से इतंजार कर रहे हैं...
मैं - वो यार थोड़ा ट्रैफिक में फस गया था... तुम कैसे हो
सुनीता - ठीक हूं
मैं - कुछ मंगाए खाने को वेज या नॉनवेज
सुनीता - वेज, मुझे नॉनवेज पसंद नहीं
मैं - ओह ठीक है
कुछ order करते हैं खाने को... फिर बात करते हैं... एक दूसरे के बारे में कुछ जानते हैं...और सबसे अच्छी बात की उसका होम टाउन मेरे घर के पास ही है 30 किलोमीटर दूर था बस...
वो कहते हैं ना...
घर से निकलते ही
कुछ दूर चलते ही
रस्ते में है उसका घर
काफ़ी हसी मज़ाक करते हैं हम दोनों....
कैफे में open mice poetry चल रहा था...लोग कुछ ना कुछ सुना रहे थे...
मुझे शायरी बहुत पसंद है... लिखता भी हूं... but शायद उसे नहीं मालूम था...मैंने उससे बोला...
मैं कुछ शायरी बोलूं...
सुनीता - आपको आता है
मैं - हां, रुको देखो बस
मैं वहां से उठकर जाकर माइक लेता हूं... बहुत सारे लोग कैफे में बैठे थे... थोड़ा मुझे डर भी लग रहा था लेकिन मैंने बिना डरे अपनी शायरी शुरू कर दी....
एक दिन तुमसे फोन पर बात हो गयी.....
थोड़ी सी हमारी जान पहचान हो गयी...
रिश्ता भी बन गया दोस्ती भी हो गयी...
दिल के थोड़ा करीब सी हो गयी...
कैसे बताऊ कैसी है वो लड़की...
मासूम सी भोली सी प्यारी है वो लड़की...
हस्ती है मुस्कुराती है थोड़े नखरे भी दिखती है...
लेकिन दिल की बहुत अच्छी है मन की बहुत सच्ची है...
आई जब पहली बार घबरा सा गया था...
मिलते ही शायद कुछ सरमा सा गया था...
उसके चेहरे पर हँसी थी मेरे चेहरे पर ख़ुशी थी...
उससे मिलकर दिल को थोड़ा अच्छा सा लगा...
अब शहर भी अजनबी से अपना सा लगा...
अब तो बाते भी होने लगी मुलाक़ातें भी होने लगी...
शहर में थोड़ी-थोड़ी बरसाते भी होने लगी...
भीगते गए हम घुमते गए हम...
उस बारिश की मस्ती में झूमते गए हम...
सोचा न था ऐसा पल भी आ जायेगा...
हम दोनों को देखकर बारिश भी सरमा जायेगा...
ये शायरी खत्म होते ही कैफे में तालियों को आवाज़ गूजने लगी... सभी लोग खूब तारीफ़ किए और खूब सारी तालियां बजाई... सुनीता भी देखकर shoked हो गई कि मैं लिखता भी हूं...शायर हूं...वो खूब ताली बजाई और उसके चेहरे पे खुशी का ठिकाना ही नहीं था बहुत खुश थी...कैफे वालों ने भी पास आकर खूब तारीफ़ की ये मेरा पहला शो था जो काफ़ी डरते हुए किया था....
सुनीता - आप इतना अच्छा लिखते हो मुझे मालूम ही नहीं था... आपने बताया भी नहीं की आप राइटर हो...
मैं - अरे ऐसा कुछ नहीं बस कभी दिल करता है तो लिख लेते हैं ख़ुद के लिए...
सुनीता - मैं तो आपकी फैन हो गई
मैं - अच्छा जी शुक्रिया
सुनीता - वैसे मैं पहले भी सोचती थी कि काश मेरा कोई ऐसा भी दोस्त होता जो लिखता हो...लेकिन आप मिल हुए और सच हो गया...
मैं - चलो ऊपर वाले ने आपकी बात तो सुन ली
सुनीता - हां जी बिल्कुल
कभी देर हम साथ रहें... फिर जैसे ही कैफे से बाहर निकलते हैं बारिश शुरू हो जाती है...अरे ये तो इत्तफाक था... वाह मेरी शायरी सुनकर बादल भी दीवाना हो गया...
सुनीता क्या बात है आपकी शायरी ने बरसात करा दिया वाह शायर शाहब...
मैं भी सोच में पड़ गया... मेरी शायरी इतना असर कर जाएगी... यकीन ही नहीं हो रहा था...
उसे बारिश में भीगना पसंद था तो वो बाहर निकल गई भीगने के लिए...
मैं - अरे बाहर क्यों जा रहे हो भीग जाओगे
सुनीता - नहीं मुझे भीगना है तुम भी आ जाओ
मैं - ना यार तबीयत मेरी ख़राब हो जाएगी
सुनीता - आ जाओ कुछ नहीं होगा
हम दोनों भीग जाते हैं...
वो कहते हैं ना...
तुम्हारी याद में ना जाने कब सुबह से शाम हो गई...
पता ही नहीं चला कि कब बादल गरजा और बरसात हो गई...
उस बरसात ने हमें इतना करीब ला दिया था कि दिल ने एक तूफ़ान सा मच गया था...जैसे किसी ने दस्तक दे दिया हो...और उस तूफ़ान में ख़ुद को बर्बाद करने का दिल कर रहा था...
अभी तक तो हम दोनों ने एक दूसरे से प्यार का इज़हार भी नहीं किया था...लेकिन उसके दिल में कुछ तो चल रहा था...कुछ कहना चाह रही थी लेकिन वो शब्द जुबां पे ही नहीं आ पा रही थी... मैं भी कुछ कहना चाह रहा था...लेकिन हम दोनों के हालात वहीं थे...
वो कहते हैं ना...
दिल की बात जुबां पे लाए तो लाए कैसे...
दिल तुझसे कुछ कहना चाहे मगर जताएं तो जताएं कैसे...
अब तो बारिश भी बंद हो गई थी हम दोनों को घर भी जाना था...
मैंने उसके लिए कुछ गिफ्ट पहले से के रखा था अभी तक दिया नहीं था...
मैंने अपनी जेब से वो गिफ्ट निकाला और उसे देता हूं...वो ये देखकर सोच में पड़ जाती है...और मुस्कुराकर वो गिफ्ट लेती है...उसे वहीं ओपन करने लगती है लेकिन मैंने मना कर दिया कि घर पर ही देखना अभी नहीं...
सुनीता - क्यों
मैं - बस ऐसे ही
फिर हम दोनों वहां से चले जाते हैं...
मुझे भी उसके साथ काफ़ी अच्छा लगा... पहली बार था कि मैं किसी लड़की के साथ इतना देर साथ में रहा... जो भी था हम दोनों के लिए यादगार पल था...
रात के करीब 11 बज रहे थे... मैं सोच रहा था कि पता नहीं उसे गिफ्ट पसंद आया होगा कि नहीं...
तभी उसका मैसेज आता है...
आशीष thanku so much आपका गिफ्ट तो बहुत ही प्यारा है...कोई शब्द ही नहीं है मेरे पास...इतना प्यारा गिफ्ट...
मैं - welcome मै यही सोच रहा था कि पता नहीं अच्छा लगा कि नहीं...
सुनीता - तुम्हारी इस छोटी सी किताब में लिखे एक एक शब्द मेरे दिल को छू गई है... मैं बस पढ़े जा रही हूं बस पढ़े जा रहीं हूं...
मैंने बस यूं हीं कुछ लिख कर दिया था... जो मेरे दिल की कलम से होकर... शब्दों के सियाही से...प्यार के पन्नों पे लिख दिया था...उसी किताब में से कुछ अल्फ़ाज़ ऐसे थे...
एक अधूरी ख्वाहिश है मेरी... आज तू इसे पूरी कर दें ...
मेरी ज़िन्दगी अधूरी है तेरे बिन...इस ज़िन्दगी को तू पूरी कर दे...
मैं भीग जाऊं तेरे इश्क़ में कुछ इस कदर...तू इतना प्यार कि बरसात कर दें...
तू मुझको ख़ुद में समा ले...और मुझे अपने इश्क़ में फना कर दें...
मेरी ज़िन्दगी है अधूरी तेरे बिन...इस ज़िन्दगी को तू आज पूरी कर कर दें...
मैं राह में खड़ा तेरा इंतज़ार करूं... ख़ुद से भी ज्यादा तुझको जी भर के प्यार करूं...
मेरे हाथों में तेरा हाथ रहे...ज़िन्दगी के सफ़र में दो चार पल का साथ रहे...
मेरी ज़िन्दगी में तू जो आई.... एक नई रोशनी है लाई...
पलकों पे मुझको जो बैठाया...मेरी आंख देख ये भर आई...
मैं मांगू उस रब से आज बस एक ही दुआ...तेरी हर दुआ वो पूरी कर दें...
मेरी ज़िन्दगी है अधूरी तेरे बिन...इस ज़िन्दगी को तू आज पूरी कर कर दें...
हमारी दोस्ती अब प्यार में बदल गया था...उसने भी मेरे साथ ज़िन्दगी भर साथ निभाने का वादा कर लिया...और ज़िन्दगी के सफ़र में हमसफ़र हो गई...
इसी बीच corona नाम की महामारी ने पूरे भारत को घेर रखा था...हर कोई ज़िन्दगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा था...पूरे भारत में lockdown लग गया... मैं किसी तरह अपने घर पहुंच गया था... क्योंकि सब कुछ बंद होने वाला था... और सुनीता भी अपनी दोस्त के साथ घर चली गई...
इस बीच ना किसी से मिलना जुलना कुछ नहीं हुआ...सब कुछ बंद हो गया...हर तरफ सन्नाटा... गली मोहल्ला सब सूना था...
आज ज़िन्दगी जैसे थम सी गई थी...सूनसान गालियां वीरान रास्तें...ना कोई पहल ना कोई शोर...बस एक सन्नाटा है...एक उदासी का माहौल है...
कितने लोग खुशनसीब हैं जो आज घर पर है...ना कहीं जाना... ना कोई काम... बस आराम ही आराम है....
सुबह उठ गए चाय पी लिया... टीवी देख लिया...जब मन किया खाना खा लिया....जब मन किया कुछ लोगों को इकठठा कर हसीं मज़ाक कर लिया...घर है परिवार है सब साथ हैं...
घर वाले भी शादी का ज़ोर देने लगे...
हम दोनों अपने अपने घर बात की और घर वालों को ये रिश्ता अच्छा लगा...और चट मांगनी पट ब्याह वाली रसम चालू हो गई....और ये रिश्ता कब शादी के बंधन में बंध गया समय का कुछ पता ही नहीं चला...बड़ी धूमधाम से हमारी शादी होती है... और ये शादी वाकई हमारे लिए यादगार थी क्यूंकि इस मौके पे हमारा पूरा परिवार साथ था...
कभी सोचा भी नहीं था कि ज़िन्दगी में किसी का साथ होगा...अभी तक तो अकेले ही सफ़र किया थ... लेकिन अब एक हमसफ़र है...और आगे भी ऐसे ही उसका साथ बना रहेगा...बस यही दुआ है...और ज़िन्दगी के सफ़र में उसके साथ सफ़र ज़ारी है...
बस इतनी सी है कहानी...
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