ख़ुद तबाह होकर मुझे तबाह कर जाती है...
मोहब्बत कर के ख़ुद वो बेवफ़ा हो जाती है...
आज कल तो वो किसी और की हो रही है...
जमाने को खबर है और ख़ुद ही बेखबर हो जाती है...
जिसके हाथों में कभी मेरा हाथ होता था...
वो आजकल किसी और का हाथ थामे बैठी है...
जो कभी आराम से मेरे गोद में सोया करती थी...
वो आजकल किसी और की गोद में जा बैठी है...
उसकी मोहब्बत में कितने मासूम ख़ुद का शिकार कर बैठें हैं...
अपना घर छोड़कर किसी और का घर जला बैठें हैं...
तेरी मोहब्बत की हवा चली कुछ इस कदर...
हर शख़्स आज ख़ुद को बर्बाद कर बैठें हैं...
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