जिंदगी में कौन खुश नही रहना चाहता...परिवार को छोड़कर बाहर कौन जॉब करना चाहता है...मगर कुछ मजबूरियां है कुछ ख्वाहिशें हैं...जिसके कारण लोग...अपनों से दूर कहीं अंजान शहर में रहने को मजबूर हो जाते हैं...जहां कोई जानने वाला नही...कोई पहचानने वाला नही...होते हैं तो बस किराए के कमरों के वो चार दीवार...और वो चार दीवार परिवार की कमी को कभी पूरा नही कर सकती...
कुछ लोग कहते हैं कि बाहर रहना ऐश की जिंदगी होती है...कोई रोकने वाला नही...कोई टोकने वाला नही... कुछ भी करो...कुछ भी खाओ... कहीं भी घूमों...मगर असल जिंदगी में ऐसा होता कहां है...
कुछ दिन की जगमगाती जिन्दगी कब अंधकार सी लगने लगती है कुछ मालूम नहीं पड़ता...
कहतें हैं ना...
जिंदगी जीने के लिए जिंदगी छोड़ आया हूं...
चंद पैसे कमाने के लिए घर छोड़ आया हूं...
एहसास तब हुआ जब घर से बहुत दूर निकल आया हूं...
अपना घर छोड़कर किराए के घर में रहने आया हूं...
दोस्त, यार, प्यार, मोहब्बत, पैसा, कोई कितना भी साथ हो मगर परिवार से दूर रहना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है....
आशीष गुप्ता...
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