तुम इतनी रूठी-रूठी सी कियुं रहती हो...
तुम इतनी गुमसुम-गुमसुम सी कियुं रहती हो...
ये तुम्हारा अंदाज है या पतझड़ का मौसम...
जो तुम इतनी खोई-खोई सी रहती हो...
तुम इतनी गुमसुम-गुमसुम सी कियुं रहती हो...
ये तुम्हारा अंदाज है या पतझड़ का मौसम...
जो तुम इतनी खोई-खोई सी रहती हो...
इतनी भी उदासी तेरी अच्छी नहीं लगती...
चेहरे पे मुस्कान तेरी सच्ची नहीं लगती...
चेहरे पे मुस्कान तेरी सच्ची नहीं लगती...
कोई राज दिल में हो तो बता देना...
कोई और मुसाफ़िर हो तो भी बता देना...
हम समझ जाएंगे सफर हमारा यही तक का था...
मंजिल बहुत दूर मगर रास्ता यहीं तक का था...
आशीष गुप्ता...
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