ये इन्तजार शब्द भी कितना मासूम है, दर्द है, प्यार है, गुस्सा है, नफरत है, बस इतंजार करने का एहसास अलग है....ज़िन्दगी बीत जाती है किसी के इतंजार में...नदियाँ सूख जाती हैं बारिश के इतंजार में....कोई किसी को पाने का इंतजार कर रहा है....तो कोई किसी को खोने का इंतजार... कोई ज़िन्दगी से जाने का इतंजार...तो कोई एक नयी ज़िन्दगी पाने का इंतजार... ये इंतजार ही तो है, जो किसी ना किसी को एक दुसरे से जोड़ता है... ये इतंजार ही तो है जो किसी ना किसी को एक दुसरे को तोड़ता है...दो लोगों के बीच की कड़ी है इंतजार... सपनो को साकार करने का हौसला है इतंजार...एक ग़रीब को दो वक़्त की रोटी का है इंतजार... एक अमीर को पैसे कमाने का है इंतजार... प्यासे को पानी का, भूखे को खाने का, बेघर को घर का, और नंगे को कपड़े का है इंतजार...घर में बैठे उस (माँ, बाप, बहन, पत्नी) को बॉर्डर में खड़े अपने (बेटा, भाई, पति)का है इंतजार...आँखे सूख जाती हैं, आंशू के इंतजार में...सपने टूट जाते हैं, पाने के इंतजार में...अपने रूठ जाते हैं उन्हें मनाने क इंतजार में...
ज़िन्दगी जीने का नाम ही है सिर्फ इंतजार...
आशीष गुप्ता
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