Thursday, 15 February 2018

तुम...


                 


तुम एक आवाज़ हो जो गूँजते हो हर किसी के धड़कन में...
तुम एक संगीत हो जो गुनगुनाते हो हर किसी के मन में...

तुम एक हवां का झोंका हो जो महसूस करते हैं खुद की साँसों में...
तुम एक गज़ल हो जो पढ़तें हैं हम हर रोज़ किताबों में...

तुम एक सच हो जो बोलता हूँ में हर रोज़ तुझे...
तुम एक ज़िन्दगी हो जो जीता हूँ हर रोज इसे....

तुम रोशनी हो उस शाम की जो जगमगाती है अंधियारों में...
तुम रोशनी हो उस रात की जो चमकती है हर सितारों में...

तुम छाया हो उस पेड़ की जो देती है आराम हमें...
तुम ख़ुश्बू हो उस बाग़ की जो महकती है हर शाम में...

तुम हकीक़त हो उस ख्वाब की जो दिखती है हर रोज मुझे...
तुम स्याही हो उस कलम की जो लिखता हूँ हर रोज़ तुझे...

आशीष गुप्ता

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