Saturday, 28 April 2018

बस यूँ हीं...

 

ये दर्द की बाहें काश की तुम थाम लेते...
ये एहसास ये अकेलापन काश की तुम मेरे पास होते...

ना रोती आँखे युँ हिं तुम्हारी याद में...
ना हँसते हम यूं हिं किसी झूटी मुस्कान में...

काश की तुम समझ जाते मेरे आँखों से निकलते इस पानी को...
जो सुनाती है हर रोज उस दर्द भरी कहानी को...

काश की तुम पढ़ पाते मेरे इन होंठों के सिसकते अल्फ़ाज को...
जो सिसकियाँ भर्ती हैं हर रोज दर्द भरी चंदिनी रात को...

काश की तुम याद करती मुझे इतना की मैं तुझमे खुद को समां पाता...
तुम्हें यूँ पास बुलाकर अपने सीने से लगा पाता...

काश की तुम प्यार करती इतना की में हर दर्द को भूल जाता...
तेरे ज़ुल्फ़ों को सहलाता मै और तेरी गोद में सो जाता...

आशीष गुप्ता

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