Wednesday, 29 August 2018

मेरी कविता

जब भी तन्हा होता हूं तो कुछ लिख लेता हूं...
अपने दुख-दर्द या हसीं मज़ाक को शब्दों से बांध लेता हूं...
जनता हूं तुम अक्सर छोड़ जाती हो साथ मेरा...
पर जब भी अकेला होता हूं तो खुद को ही पढ़ लेता हूं ...

आशीष...

सुकून

आज बैठा हूं उदास इस जिंदगी के सफ़र में...
सोचता हूं कोई कारवां मिल जाए...
हर ख़्वाब हक़ीक़त हो जाए ऐसा कोई नज़ारा मिल जाए...
कोई तो अपना होगा जो मिटा दे मेरी खामोशियों को...
बस यही आरज़ू है रब से ,उस तिनके का सहारा मिल जाए...

आशीष...

फैसला

हमने ज़िन्दगी का हर फैसला उन पर छोड़ दिया था...
अपनी मुकद्दर की सारी खुशियां भी उनके कदमों में सजदा कर दिया था...
अब वो वफा करे या बेवफाई ये मर्ज़ी भी उनकी...
हमने ये भी फ़ैसला उनके मुस्कान पे छोड़ दिया था...

आशीष...

चश्मा

तू मासूमियत से भी ज्यादा और भी मासूम सी दिखती हो...
जब चेहरे पे चश्मा हो तो और भी खूबसूरत सी दिखती हो...
में हर बार तेरे चेहरे की उस मुस्कुराहट को देखता हूं...
आंखे मेरी भी झुक जाती है जब सामने तुझे देखता हूं...

आशीष...

पुराना दौर

चलो उस दौर की शुरुआत फिर से करते हैं...
इस गुमनाम शहर में थोड़ी बरसात फिर से करते हैं...

वो लड़ाई, वो झगड़े, वो रूठना वो मनाना...
हसाना, रुलाना फिर एक दूसरे को खूब सताना...

अपनी यारी की शुरुआत फिर से करते हैं...
चलो उस दिन की शुरुआत फिर से करते हैं...

आशीष...

गुनहगार

गुनाह किसी और ने किया और गुनहगार मुझे कर दिया...

तुमने तो कत्ल का इल्ज़ाम भी हम ही रख दिया...

क्या चाल चली तुमने अपने हुस्न के जाल से...

गवाह भी खरीदा जज भी ख़रीदा और सबूत मेरे नाम कर दिया...

आशीष...

तेरी याद

सुनो ना
अभी तुम्हारी याद आयी
और बहुत आयी...

अचानक से हवा चली
जैसे मुझसे कुछ कह गई...

उसने मुझे छुआ यूं हीं
ऐसा लगा तुमने छुआ यूं हीं...

कुछ एहसास हुआ अभी
थोड़ा महसूस हुआ अभी...

तुम भी याद कर रही हो ना
शायद मुझे याद कर रही हो ना...

मन करता है बात करूं
या थोड़ी मुलाक़ात करू...

आशीष...

बदल गए

हम भी बदल गए...
तुम भी बदल गए...
कुछ दूर क्या हुए...
ये शहर ही बदल गए...
प्यार बदल गया...
जज़्बात बदल गए...
जैसे जैसे दिन बीता...
हर शाम बदल गए...

आशीष...

अजनबी

एक अजनबी से एक दिन बस यूं हीं मुलाक़ात हो जाती है...

कुछ पल के लिए ही सही एक अनकही सी बात हो जाती है...

धीरे धीरे उसकी बातें भी हमारी एक आदत बन जाती है...

वो आदत भी एक अजनबी को अजनबी से अपना बना जाती है...

आशीष गुप्ता...

चांद और मोहब्बत

थोड़ा सा प्यार क्या हो गया
चांद को हमने अपना महबूब ही मान लिया...

उसके मोहब्बत को भी हमने खुद का ही ताज मान लिया...

अरे कुछ तो सोचा होता क्या बीतेगी उसपर उस चांदनी रात में...

अपनी मोहब्बत के लिए उस चांद को भी हमने इस ज़मी पर ही उतार दिया...

आशीष...

झूट

तुम झूठ बोल कर अपनी हर कहानी में मुझे बांध देती हो...

और हम सच समझकर उस कहानी पर ऐतबार कर लेते हैं...

आशीष...

दोस्तों की महफिल

जिंदगी में बहुत से लोग थे मगर फिर भी कुछ कमी सी थी...

मेरे हाथों में रब का हाथ था मगर फिर भी कुछ कमी सी थी...

आज बैठा जब इस मह फिल में तो मालूम हुआ...

दोस्त तो बहुत थे मगर ज़िन्दगी में तो इन दोस्तो की कमी सी थी...

आशीष...

याद

तेरी यादों के सहारे ये दिन कब शाम हो गई...
पता ही नहीं चला कब बदल गरजा
और बरसात हो गई...

आशीष...

तुम और सफर

तुम इतनी रूठी-रूठी सी कियुं रहती हो...
तुम इतनी गुमसुम-गुमसुम सी कियुं रहती हो...

ये तुम्हारा अंदाज है या पतझड़ का मौसम...
जो तुम इतनी खोई-खोई सी रहती हो...

इतनी भी उदासी तेरी अच्छी नहीं लगती...
चेहरे पे मुस्कान तेरी सच्ची नहीं लगती...

कोई राज दिल में हो तो बता देना...
कोई और मुसाफ़िर हो तो भी बता देना...

हम समझ जाएंगे सफर हमारा यही तक का था...
मंजिल बहुत दूर मगर रास्ता यहीं तक का था...

आशीष गुप्ता...

रूठना...

समंदर भी कोशिश करता है किनारों तक पहुंचने की...

मगर लहरें हैं कि आकर लौट जाती हैं...

जिंदगी भी चाहती है अपनों तक पहुंचने की...

मगर अपने हैं की हमसे रूठ जाती हैं...

आशीष...

जिंदगी और परेशानियां

मंजिले अगर आसानी से मिल जाएं
तो रास्ते का मजा ही क्या है...

परेशानियां अगर आसानी से सुलझ जाए
तो जिंदगी जीने का मज़ा ही क्या है...

आशीष...

दोस्ती

दोस्तों की मेहफिल थी
शाम भी रंगीन थी...

वो पल भी क्या पल था
जब सामने तू थी...

आंखों में नशा था
बातों में प्यार...

अब नाराजगी किस बात की
आ गले लग जा मेरे यार..

आशीष...

फरेब

हां माना मेरा अभी कोई नाम नहीं है...
और तुम्हारे दिल ने अभी से ही गुमनाम कर दिया...

अभी तो सफ़र की शुरुआत की है मैंने...
और अभी से ही हमें बदनाम कर दिया...

यूं मेरा नाम बदनाम कर के तुम्हें क्या हासिल हो गया...
अब तो तेरे शहर में भी मेरे नाम के चर्चे और भी ज्यादा हो गया...

मशहूर होने तुम चली थी...
और बदनामी मेरे नाम कर दिया...

अब देखो खुद तो बदनाम हो गई...
और मशहूर मुझे कर दिया...

आशीष...

हर ख़्वाब हक़ीक़त हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हर मोहब्बत पूरी हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हम तुम्हें पसंद करतें हैं ...ये और बात है... त...