Tuesday, 29 January 2019

किताब...

जिंदगी की खाली किताब में अभी कुछ शब्द भरने बाकी है.…

जो सपने अभी देखें है वो हक्विकत करना अभी बाकी है....

आशीष गुप्ता...

चेहरा...

ना जाने कियूं ये एहसास मुझे हर-बार होता है...
जिस चेहरे की तलाश होती है, वो चेहरा मेरे आस-पास ही होता है...

लाख कोशिश कर लो कि, आज वो चेहरा ना दिखे...
मगर ऐसा लगता है कि, आँखों को तो बस उसी का ही इंतजार होता है...

वो चेहरा भी कितनो की भीड़ में मानो, कितना अलग दिखता है...
जैसे लगता है कि रात की चांदनी में वो चांद सबसे अलग दिखता है...

ख़ूबसूरत होती है उस चेहरे की हर एक अदा,
जो महसूस दिल को होता है...
नज़रों को झुकना, पलको को उठाना, फिर होंठो से मुस्कुराना, ये अंदाज भी उस चेहरे का कितना लाज़वाब होता है...

आशीष गुप्ता...

तुम

बहुत दिनों से सोच रहा था कि आज कुछ लिख दूं...
गर इजाज़त हो तुम्हारी तो एक ग़ज़ल ही लिख दूं...

तुम कहो तो दिन को रात भी लिख दूं
अपने दिल के सारे जज़्बात भी लिख दूं...

प्यार भी लिख दूं मोहब्बत भी लिख दूं...
चेहरे पे तेरी हर मुस्कुराहट को लिख दूं...

तू आए तो कदमों की आहट भी लिख दूं...
तू कह दे तो सांसों में सांसे भी लिख दूं...

तू नज़रे झुकाए तो शर्माना भी लिख दूं...
तू पलकें उठाए तो आशिकाना भी लिख दूं...

सागर से जो बहता वो रवानी भी लिख दूं...
आंखों से जो निकले वो पानी भी लिख दूं...

हवाएं भी लिख दूं बरसात भी लिख दूं...
तू कह दे तो धड़कन पे तेरा नाम ही लिख दूं...

आशीष गुप्ता...

तेरे साथ गर खामोश रहूं तो बातें भी पूरी हो जाती है...

तुम जब होती हो पास मेरे, तो रातें छोटी हो जाती है...
आंखों में होती है नींद मगर, वो नींद भी पूरी हो जाती है...
तुमने जो पकड़ा हाथ मेरा, तो सांसे भी थोड़ी थम जाती है...
तुम्हारे साथ गर खामोश रहूं तो, बातें भी पूरी हो जाती है...

जब जब लेता हूं नाम तेरा, तो धड़कन मेरी बढ़ जाती है...
सुबह सुबह जब खुद को देखूं, तस्वीर तुम्हारी दिख जाती है...
आती है जब याद तुम्हारी, आंखें भी थोड़ी नम हो जाती है....
चेहरे पे होती है मुस्कान मगर, वो मुस्कान अधूरी रह जाती है...

तेरे साथ गर खामोश रहूं तो, बातें भी पूरी हो जाती है...

रात के साएं में जब भी वो, चांद अकेला दिखता है...
गौर से देखूं उसमें भी, वो प्यार मुखड़ा दिखता है...
फिर बजली चमके, बादल गरजे, बरसात भी थोड़ी हो जाती है...
तेरे साथ गर खामोश रहुं तो, बातें भी पूरी हो जाती है...

आशीष गुप्ता...

घर

नई-नई सुबह गर हो तो, दिन भी अच्छा लगता है...
नया-नया शहर गर हो तो, शहर भी अच्छा लगता है...
ढूंढ लो कितना भी सुख, इस सारे संसार में...
लेकिन थोड़ी सी तकलीफ गर हो तो, अपना घर ही अच्छा लगता है...

आशीष गुप्ता...

Sunday, 20 January 2019

सांवली लड़की

वो लड़की
कुछ सावली सी थी...

मगर लगती
थोड़ी माल भी थी...

उसकी अदाएं भी
थोड़ी कातिलाना सी थी...

मगर जब चलती तो
और भी कमाल की थी...

उसकी आंखों मे एक
नशा सा था...

उसकी बातों में कुछ
मज़ा सा था...

हिलाकर चलती
जब कमर वो थी...

ना देखूं तो लगती
कुछ सज़ा सी थी...

होंठ पे उसने लगाई
लाली जो थी...

दांत से जब दबाती उसे
तो लगती मलाई सी थी...

क़यामत कयामत कयामत

तेरे आंखों से मेरे आंख मिले तो
क़यामत कयामत कयामत

मेरे हाथों से तेरे हाथ जुड़े तो भी
क़यामत कयामत कयामत

मेरे होंठो से तेरे होंठ मिले तो
और भी
क़यामत कयामत कयामत

तू सज सवर कर जब घर से बाहर निकले तो फिर बस क्या
बगावत बगावत बगावत

दिसंबर का महीना...

ये दिसम्बर का महीना भी कितना यादगार होता है...
जनवरी से लेकर नवंबर तक के सारी यादों का हिसाब होता है...

अगर अच्छा हुआ तो, साल खुशनुमा हो जाता है...
अगर बुरा गया तो, ये साल भी बुरे दिनों के परवान चढ़ जाता...

कितनों की मोहब्बत, आबाद हो जाती है तो...
कितनों की मोहब्बत, बर्बाद हो जाती है...
कितनों के सपने साकार हो जाते हैं...
तो कितनों के सपने आखिर टूट ही जाते हैं...

फिर इतंजार करते हैं हम...इस नए साल का...
ज़िन्दगी जीने के एक नए आगाज़ का...

इस साल कुछ नया करने का आस होता है...
या इस साल कुछ अच्छा करने का खुद पर विश्वास होता है...

फिर नए दोस्त होंगे...नया प्यार होगा...
नई ज़िंदगी होगी...और नई ज़िंदगी जीने का खुमार होगा...

आशीष गुप्ता...

ज़ख्म

खामोशियों को अगर कोई समझ जाए तो अल्फ़ाज़ की ज़रूरत ही क्या है...

अगर दर्द को ही लोग समझ जाएं तो फिर आशुओं की जरूरत ही क्या है...

बयां कर दू अपने सारे जख्मों को, अपनी खामोशियों से ही...

मगर जब ज़ख्म ही भर जाए तो फिर, मरहम की ज़रूरत ही क्या है...

चेहरा

ना जाने कियूं ये एहसास मुझे हर-बार होता है...
जिस चेहरे की तलाश होती है, वो चेहरा मेरे आस-पास ही होता है...

लाख कोशिश कर लो कि, आज वो चेहरा ना दिखे...
मगर ऐसा लगता है कि, आँखों को तो बस उसी का ही इंतजार होता है...

वो चेहरा भी कितनो की भीड़ में मानो, कितना अलग दिखता है...
जैसे लगता है कि रात की चांदनी में वो चांद सबसे अलग दिखता है...

ख़ूबसूरत होती है उस चेहरे की हर एक अदा,
जो महसूस दिल को होता है...
नज़रों को झुकना, पलको को उठाना, फिर होंठो से मुस्कुराना, ये अंदाज भी उस चेहरे का कितना लाज़वाब होता है...

हर ख़्वाब हक़ीक़त हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हर मोहब्बत पूरी हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हम तुम्हें पसंद करतें हैं ...ये और बात है... त...