Sunday, 29 April 2018

प्यार इश्क़ और मोहब्बत

हमने तो इश्क़ का नाम ही ना सुना था...
तुम जो मिले तो ज़िन्दगी मोहब्बत सी हो गयी...
अज़नबी थे प्यार, इश्क़ और मोहब्बत के नाम से भी...
तुम जो आये तो रातोँ की नींद भी कहीं खो सी गयी...

सरीफ़ तो हम भी थे दुनिया के इस सराफत के बाज़ार में...
तुमने जो निगाहों से वॉर किया बदनाम हम भी हो गए...
क्या फर्क पड़ता है गर मेरे नाम के आगे तेरा नाम जुड़ जाये...
कुछ पल के लिए ही सही मसहूर तुम भी और मसहूर हम भी हो गए...


आशीष गुप्ता

Saturday, 28 April 2018

हमारा अंदाज बदला बदला सा है...

आज कल मौसम का मिज़ाज कुछ बदला बदला सा है...
कहीं पतझड़ है तो कहीं धुआँ धुआँ सा है..

ये समय उलटफेर है या मौसम की तब्दीलियत...
आज कल हम दोनों का अंदाज कियूं बदला बदला सा है...

आशीष गुप्ता

काश तुम अज़नबी होते...

काश ज़िन्दगी यूँ ही चलती रहती...
ना वो पास आते ना हम दिल लगाते...
ना प्यार हमको होता ना एहसास तुमको होता...
होते तो बस हम अज़नबी तुम अज़नबी...
ना कोई रिश्ता ना कोई ख्वाईश...
बस ज़िन्दगी जीते खुद के लिए किसी अपनों के लिए....

आशीष गुप्ता

अज़नबी से रिश्ता...

कियूं कभी कोई दिल के पास आ जाता है...कैसे कभी एक अज़नबी से रिश्ता जुड़ जाता है...
रिश्ता भी इतना गहरा की वो दिल में बस जाता है...और वो अज़नबी एक अज़नबी से अपना बन जाता है....जैसे की तुम...

आशीष गुप्ता

मेरी मंजिल...

अभी तो शुरू किया है दो चार कदम चलना ये ज़िन्दगी...
तूफानों ने अपना मिज़ाज अभी से बदल रखा है...
बोल दो उनसे थोड़ा शब्र रखें...
आंधियों को हमने मंजिल का पता दे रखा है....

आशीष गुप्ता

तेरी याद...

आज अचानक से ये हवा कहाँ से गुजरी है....
जिधर भी देखो हर तरफ बस तेरी यादों का तूफ़ान है...
रोक लो इन्हें कही बरबाद ना कर दे इन बस्तियों को...
यहाँ तो हर शख्श का बसेरा आज मोहब्बत के आशियाने में हैँ...

आशीष गुप्ता

तुम और में...

तुम ही मेरा प्यार हो, तुम ही मेरा इश्क़ हो...
तुम ही मेरी जान हो, तुम ही मेरा अरमान हो...

तुम ही मेरा झूट हो, तुम ही मेरा सच हो...
तुम ही मेरा ख्वाब हो, तुम ही मेरा आफ़ताब हो...

तुम ही मेरी धूप हो, तुम ही मेरी छाँव हो...
तुम ही मेरी सोच हो, तुम ही मेरे जज़्बात हो..

तुम ही मेरी ताक़त हो, तुम ही मेरी कमज़ोरी हो...
तुम ही मेरी दुआ हो, तुम ही मेरा खुदा हो...

तुम ही मेरा दिन हो, तुम ही मेरी रात हो...
तुम ही मेरा कल हो, तुम ही मेरा आज हो...

तुम ही मेरी ज़िन्दगी हो, तुम ही मेरी बंदिगि हो...
तुम ही मेरी आशिक़ी हो, तुम ही मेरी सादगी हो...

तुम हो तो मेरी साँसे हैं, तुम हो तो मेरी धड़कने हैं...
तुम हो तो हर पर्वत के शीश हैं, तुम हो तभी ये आशीष है...

आशीष गुप्ता

वो चेहरा...

वो चेहरा......जिसे देखता हुँ
छुप छुप कर देखता हुँ......

खोजता हुँ.....हर पल ही खोजता हुँ......
वो आज दिखी......कहीं दूर से दिखी......

थोड़ी पास आ गयी......बहुत ही पास आ गयी......
उसने भी देखा कुछ युं......मैंने भी देखा कुछ युं......

थोड़ी सी मुस्कुरायी......मुझे देखकर मुस्कुरायी......
आज कुछ अलग सा था......चेहरे पे उसके चमक सा था......

ख़ूबसूरत थी......बहुत ही ख़ूबसूरत थी......
मासूमियत भी थी......बहुत ही मासूमियत थी......

वो सबसे अलग थी......हर चेहरे से अलग थी......
वो जैसे परी सी थी......वो इतनी प्यारी जो थी......

(आशीष गुप्ता)

नज़रअंदाज़...



हमने तो सुनी हज़ारों कहानियां...
पर हर कहानी में तो बस ज़िक्र किसी और का था...
ख्याल रखते हैं जिनका हम खुद से भी ज़्यादा अक्सर...
मगर उनके ख्यालों में तो फ़िक्र किसी और का था...

हमने तो सारी हदें पार कर दी
उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान के लिए...
मगर जब वो हँसी भी तो एहसास हुआ...
उसके चेहरे पे वो मुस्कान किसी और का था...

वो दूर खड़ी निगाहों से अपने जब इसारा किया मेरी तरफ...
जब पलटकर देखा तो उस इशारे का निशाना किसी और पर था...

आशीष गुप्ता

बारिश...


बादल का गरजना, बिजली का चमकना, हवाओं का बहकना,
इंतजार कराती हैँ किसी के आने की... उम्मीद जगाती है किसी को कुछ पाने की...ये बारिस की बूंदे हीं तो हैं... जो बादलों से टकराकर, तूफानों को हराकर, सूखी पड़ी नदी की, और बंज़र हुई जमीं की प्यास बुझाती है...ये बारिश ही तो है, जिनसे फूलों की कलियां, चिड़ियों का चहकना, पानी में झरना और आँखों में रैना का एहसास कराती है...

आशीष गुप्ता

नया साल...



सोचते-सोचते कब शाम हो गयी, पता ही नही चला...
देखते-देखते पुराना साल कब नया हो गया, पता ही नही चला...

जब नया साल आ ही गया है तो, खुल कर खूब एन्जोय करते है...
दोस्तों क साथ मिलकर थोड़ी मुलाकात करते हैँ...

पुरानी यादें, पुराने दोस्त, हमेशा की तरह आज भी वही है...
नया दिन बदला है, नई तारीख बदली है...
मगर हम भी हमेशा की तरह आज भी वही है...

शुक्रगुजार हैँ हम उस ज़िन्दगी का, जिनसे ज़िन्दगी में एक नया मोड़ आया है...
मेरे लिए मेरे घर से, अपनो का प्यार आया है...

यह साल मेरे लिए कुछ खास बन रहा है...
आप जैसा दोस्त इस साल मिल रहा है...

कुछ दोस्त मिले तो, कुछ दोस्त बिछड़ गए इस साल...
कुछ सपने सच हुए तो, कुछ टूट गए इस साल...

वो दौर कुछ और था, ये दौर कुछ और है...
वो दिन कुछ और था, आज का दिन कुछ और है...

अब तो साल भी नया है, दिन भी नया है...
ज़िन्दगी को जीने का एहसास भी नया है ...

मंजिल भी नया है, रास्ता भी नया है...
उस मुकाम तक पहुँचने के लिए, हमारा अंदाज भी नया है...

वो दिन भी आयेगा, जब दुनिया याद करेगी...
इस बन्दे को दुनिया सलाम भी करेगी...

आशीष गुप्ता

बस यूँ हीं...

 

ये दर्द की बाहें काश की तुम थाम लेते...
ये एहसास ये अकेलापन काश की तुम मेरे पास होते...

ना रोती आँखे युँ हिं तुम्हारी याद में...
ना हँसते हम यूं हिं किसी झूटी मुस्कान में...

काश की तुम समझ जाते मेरे आँखों से निकलते इस पानी को...
जो सुनाती है हर रोज उस दर्द भरी कहानी को...

काश की तुम पढ़ पाते मेरे इन होंठों के सिसकते अल्फ़ाज को...
जो सिसकियाँ भर्ती हैं हर रोज दर्द भरी चंदिनी रात को...

काश की तुम याद करती मुझे इतना की मैं तुझमे खुद को समां पाता...
तुम्हें यूँ पास बुलाकर अपने सीने से लगा पाता...

काश की तुम प्यार करती इतना की में हर दर्द को भूल जाता...
तेरे ज़ुल्फ़ों को सहलाता मै और तेरी गोद में सो जाता...

आशीष गुप्ता

Thursday, 26 April 2018

पंछी का बसेरा


उस पेड़ की डाली पर एक पंछी का बसेरा था...
तिनका तिनका से बनाया हुआ उसका एक प्यारा सा घर था...

उसके घर में भी एक परिवार हुआ करता था...
उस परिवार में भी खुशहाली के दो चार पल का प्यार गुलज़ार हुआ करता था...

आज हमने अपनी घर की सजावट के लिए किसी का घर तोड़ दिया...
आज उस पंछी का घर किसी ने बड़ी बेहरहमी से तोड़ दिया...

जिस पेड़ ने हिफ़ाजत किया उस छोटे से परिवार का...
जिस डाली ने रखवाली की उस नन्हें से घरबार का...

उस पेड़ की टहनी को हमने बस यूं हीं तोड़ दिया...
अपना घर सजाने के लिए कितने पंछियों का घर तोड़ दिया...

आशीष गुप्ता

Wednesday, 4 April 2018

कॉलेज से दोस्ती तक का सफ़र



तुम जो मिले तो ज़िन्दगी कितनी हसींन हो गयी थी...
वो ख़ुशी के पल कुछ पल के लिए मेरे करीब सी हो गयी थी...

कॉलेज में बात हुई थी कॉलेज से रिश्ते की शुरुआत हुई थी...
दोस्ती भी हो गयी थी दिल के थोड़ा करीब सी हो गयी थी...

मिले थे पहली बार तो घबरा सा गया था...
सामने देखकर कुछ सरमा सा गया था...

छुप छुप कर देखना अच्छा लगा मुझे...
वो कॉलेज में मिलना अच्छा लगा मुझे...

तुम जाकर भी वापस कुछ बहाने से आई...
मुझे देखने के लिए शायद तू फिर वापस आई...

वो दिन भी मेरे लिए कितना खास बन गया...
जैसे कोई सपना तब साकार हो गया...

मुलाक़ातो का सिलसिला शायद युँ हीं बरक़रार रहता...
तुम्हारा दिल भी मुझसे मिलने को बेक़रार रहता...

फिर वो दिन भी आया जब दोबारा मुलाक़ात होनी थी...
तेरे भाई की शादी आई और फिर मुलाक़ात होनी थी...

आया वहाँ घूमा वहाँ...
छुप छुप कर भी तुमको देखा वहां...

सामने भी आती थी थोड़ा मुस्कुराती थी...
कितना कोशिश कर लू फिर भी बात ही ना वो पाती थी...

चलो ये दौर भी बड़ा शानदार रहा...
तुमसे मिलने का वो पल बड़ा यादगार रहा...

अब वो दिन भी आया जब मिलना फिर से हुआ...
बाइक पर बैठकर मेरे घर को आना फिर से हुआ...

बाइक पर बैठाना एक ख्वाब था मेरे लिए...
वो ख़्वाब आख़िर सच कर ही दिया तुमने मेरे लिए...

फिर दूर जाना तुमसे बड़ा बुरा सा लगा...
मेरा मन भी मेरे दिल से अब उदास रहने लगा....

तेरे साथ बिताया हुआ वो पल मेरे ज़िन्दगी का सबसे हसीन पल रहा...
मेरे ज़िन्दगी के उस बीतें हुए दिन में सबसे हसीन कल रहा...

तू आज भी मेरे सांसों में मेरे धड़कन में सबसे करीब बसते हो...
तुम दूर होकर भी आज मेरे सबसे करीब रहते हो....😍😍😍

आशीष गुप्ता

हर ख़्वाब हक़ीक़त हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हर मोहब्बत पूरी हो जाए ...ये जरूरी तो नहीं... हम तुम्हें पसंद करतें हैं ...ये और बात है... त...